मंगलवार, 18 अक्तूबर 2011

कौन चाहेगा ?


डॉ हरदीप कौर सन्धु
कौन चाहेगा 
  मन को यूँ रुलाना 
इन आँखों में
आँसुओं को बसाना
दर्द देता है
जब यह  ज़माना
बन जाती हैं 
तब ये डरी आँखें 
दर्द से भरे
आँसुओं का ठिकाना 
भीगी अँखियाँ
छल-छल छलकीं
जग छलावा
ये अब देखने के 
काबिल हुईं 
इन आँखों में कभी
आँसू न लाना 
जीने न देगा यहाँ
तुझे ज़माना
कोई पोंछे न पोंछे 
आज ये आँसू
तो कोई गम नहीं
आज के बाद 
देखोगे  साफ़-साफ़ 
यह ज़माना 
कभी भी न तिरेंगे 
आँखों में आँसू
ये तरल नयन 
बनेगे अब 
हिम्मत का ठिकाना 
देखेगा ये ज़माना !

-0-
(सभी चित्र गूगल से साभार)

10 टिप्‍पणियां:

Rachana ने कहा…

aankhen aansun himmat intino ko ek sutr me pirokar kya sunder rachna ki hai
badhai
rachana

सुभाष नीरव ने कहा…

सन्धु जी के ये चौके भावपूर्ण ही नहीं, अर्थवान भी हैं।

amita kaundal ने कहा…

जीने न देगा यहाँ
तुझे ज़माना
कोई पोंछे न पोंछे
आज ये आँसू
तो कोई गम नहीं
आज के बाद
देखोगे साफ़-साफ़
यह ज़माना
कभी भी न तिरेंगे
आँखों में आँसू
ये तरल नयन
बनेगे अब
हिम्मत का ठिकाना
देखेगा ये ज़माना

bahut sunder likha hai hardeep ji badhai,
saadar,
amita

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

ये तरल नयन
बनेगे अब
हिम्मत का ठिकाना
देखेगा ये ज़माना !
Bahut ashavadi soch ki jhala in panktiyon dritigochar hoti hai...bahut2 badhai...

हिन्दी हाइगा ने कहा…

सकारात्मक सोच वाली बेहतरीन प्रस्तुति...बहुत-बहुत बधाई|

Urmi ने कहा…

बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने! हर एक पंक्तियाँ दिल को छू गई! उम्दा प्रस्तुती!

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

bahut sundar bhaav...

कोई पोंछे न पोंछे
आज ये आँसू
तो कोई गम नहीं
आज के बाद
देखोगे साफ़-साफ़
यह ज़माना

saarthak rachna ke liye Hardeep ji ko badhai.

Shabad shabad ने कहा…

हर्षित हूँ आपको मेरा यह चोका अच्छा लगा |आपका स्नेह मिला …. आपके आत्मीय विचारों ने मेरा उत्साह बढ़ाया | इसी तरह आत्मीयता बनाएं रखें।
हरदीप

Satish Saxena ने कहा…

बहुत खूब ...
शुभकामनायें आपको !

satishrajpushkarana ने कहा…

नई विधा में इतनी दूर बैठी हरदीप जी चोका को कितना सार्थक बना सकती हैं, यह इस मार्मिक चोका "कौन चाहेगा ?" से सिद्ध होता है।इन पंक्तियों के लिए आपको हार्दिक बधाई !
दर्द देता है
जब यह ज़माना
बन जाती हैं
तब ये डरी आँखें
दर्द से भरे
आँसुओं का ठिकाना
भीगी अँखियाँ
छल-छल छलकीं
जग छलावा
ये अब देखने के
काबिल हुईं