शनिवार, 10 मार्च 2012

एक शर्त हमारी


डॉ0ज्योत्स्ना शर्मा
1
चाहें न चाहें
हम कहें न कहें
नियति -नटी
बस यूँ ही नचाए
रंग सारे दिखाए  ।
2
नैनों में नींद
मैं समझ जाती हूँ
सुख है यहाँ
धीरज और धर्म
फिर जायेगा कहाँ
        3
सुख तो आते
संग-संग गठरी
दुःखों की लाते
मै खुलने न दूँगी
बिखरने भी नहीं ।




                     
4
कान्हा मैं खेलूँ
एक शर्त हमारी
जीतूँ तो "मेरे"
और जो हार जाऊँ ?
तो मै सारी तुम्हारी ।
                       -0-

17 टिप्‍पणियां:

अमिता कौंडल ने कहा…

चाहें न चाहें

हम कहें न कहें

नियति -नटी

बस यूँ ही नचाए

रंग सारे दिखाए ।

सुख तो आते
संग-संग गठरी

दुःखों की लाते

मै खुलने न दूँगी

बिखरने भी नहीं ।



कान्हा मैं खेलूँ
एक शर्त हमारी
जीतूँ तो "मेरे"
और जो हार जाऊँ ?
तो मै सारी तुम्हारी

बहुत सुंदर तांका हैं एक से बढ़ कर एक .हार्दिक बधाई.

सादर,

अमिता कौंडल

सीमा स्‍मृति ने कहा…

सुख तो आते
संग-संग गठरी
दुःखों की लाते
मै खुलने न दूँगी
बिखरने भी नहीं ।
बहुत सुन्‍दर तॉंका । सुख दुख के इस अद्यम् सत्‍य को बखूबी कहा गया है। ज्‍योत्‍स्‍ना शर्मा जी को बधाई।

ऋता शेखर 'मधु' ने कहा…

कान्हा मैं खेलूँ
एक शर्त हमारी
जीतूँ तो "मेरे"
और जो हार जाऊँ ?
तो मै सारी तुम्हारी ।

bahut sunder bhaav...badhai!

bikharemoti ने कहा…

कान्हा मैं खेलूँ
एक शर्त हमारी
जीतूँ तो "मेरे"
और जो हार जाऊँ ?
तो मै सारी तुम्हारी ।
-अदभुत प्रेम की अद्भुत शर्त है ज्योत्स्ना जी ! जीतूँ तो''मेरे'' और हार जाने पर ''मैं सारी तुम्हारी'' -आत्मा और परमात्मा का विलय , प्रेम की पराकाष्ठा ! आपके भावविभोर करने वाले ताँका के लिए हार्दिक बधाई !
डॉ. अनीता कपूर

satishrajpushkarana ने कहा…

सुख तो आते
संग-संग गठरी
दुःखों की लाते
मै खुलने न दूँगी
बिखरने भी नहीं ।
-आपने जीवन के सुख का मूलमन्त्र दे दिया । दु:ख की गठरी सबके जीवन में है , बस उसे खोला न जाए । बधाई !

ज्योत्स्ना शर्मा ने कहा…

आदरणीय satishrajpushkarana ji ,डा. अनीता कपूर जी,ऋता शेखर मधु जी,सीमा स्मृ्ति जी , डा.रूपचन्द्र शास्त्री मयंक जी एवम अमिता कौंडल जी आपके सुन्दर ,प्रेरक शब्द मेरे लेखन को और नई ऊर्जा दे गये.....मै हृ्दय से आभारी हूं.....ज्योत्स्ना

बेनामी ने कहा…

ati sundar.....
रमाकान्त

ashwini kumar vishnu ने कहा…

श्रेष्ठ तांका कविताएं ! " चाहें न चाहें/ हम कहें न कहें/ नियति-नटी/ बस यूँ ही नचाए/ रँग सारे दिखाए " जीवन-दर्शन की गंभीरता समेटे है तो " कान्हा मैं खेलूँ/ एक शर्त हमारी/ जीतूँ तो 'मेरे'/ और जो हार जाऊँ/ तो मैं सारी तुम्हारी" समर्पित प्रीत की अथाह गहराई को अभिव्यंजित करता है! बधाई ज्योत्स्ना जी !

virendra sharma ने कहा…

तांका का भाव सौन्दर्य देखते ही बनता है अर्थ की गहराई भी उतराई भी ,मैं तो सारी भीज गई .

दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

कान्हा मैं खेलूँ
एक शर्त हमारी
जीतूँ तो "मेरे"
और जो हार जाऊँ ?
तो मै सारी तुम्हारी ।--------समर्पण की खूबसूरत अभिव्यक्ति

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

कान्हा मैं खेलूँ
एक शर्त हमारी
जीतूँ तो "मेरे"
और जो हार जाऊँ ?
तो मै सारी तुम्हारी ।

javaab nahi iska ,prem ki ye abhivyakti laajvaab hai ...bahut2 badhai...

ज्योत्स्ना शर्मा ने कहा…

हार्दिक धन्यवाद....रमाकान्त जी

ज्योत्स्ना शर्मा ने कहा…

दिलबाग विर्क जी,veerubhai जी एवं ashwini kumar vishnu जी ..मेरे भावों के साथ समरस आपकी प्रतिक्रिया और सराहना मेरी अनमोल निधि हैं...जिसके लिये मै आपकी बहुत बहुत आभारी हूं...!

Rachana ने कहा…

मै खुलने न दूँगी
बिखरने भी नहीं ।
ye bhav to kamal ke hain ek nari kuchh bhi kar sakti hai
badhai
rachana

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

'नियति -नटी' बहुत खास बिम्ब, सभी रचनाएं अद्वितीय हैं, शुभकामनाएँ.

ज्योति-कलश ने कहा…

बहुत आभार प्रेरक प्रतिक्रिया हेतु ...भावना जी
सादर
ज्योत्स्ना शर्मा

ज्योति-कलश ने कहा…

ह्रदय से आभार ...डॉ. जेन्नी शबनम जी एवं रचना जी ..स्नेह बनाए रखियेगा !

सादर
ज्योत्स्ना शर्मा