रविवार, 1 अप्रैल 2012

एक लम्हा था


 डॉoरमा  द्विवेदी
      1
दीप लघु हूँ
अन्धकार पीता हूँ
प्रकाश देता
स्वयं जलकर भी
खुशियाँ बाँटता हूँ ।
2
नेह रिश्तों का
डगमगाता नहीं
धूप-छाँव में
तरोताज़ा रहता
खिलता गुलाब -सा ।
3
कहावत है-
अकेले का रुदन
अच्छा न होता
कंधे का सहारा हो
रोना संगीत बने ।
4
उठा न पाएँ
दुःख का भारी भार
सुख हल्का है
खुश होके उठाएँ
मंद-मंद मुस्काएँ
5
मौन का दर्द
समझे नहीं कोई
आँखों की भाषा
पढ़ न पाया कोई
वेदना जब रोई ।
6
मौन हो तुम
मौन हैं अहसास
समझ ली है
बाँच ली है उसने
प्रेम की परिभाषा ।
7
एक लम्हा था
अहसास दे गया
सुकून भरा
जीवन की संतुष्टि
रही न दूजी चाह ।
8
जीने के लिए
खाना -पीने के साथ
प्यार चाहिए
इज़हार चाहिए
मीठी तकरार भी ।
9
अचूक नुस्ख़ा
प्रेम मरहम है
हर दर्द का
आजमा कर देखें
हर घाव भरता ।
-0-


5 टिप्‍पणियां:

रंजू भाटिया ने कहा…

bahut badhiya ....

रविकर ने कहा…

बुधवारीय चर्चा मंच पर है
आप की उत्कृष्ट प्रस्तुति ।

charchamanch.blogspot.com

amita kaundal ने कहा…

अचूक नुस्ख़ा
प्रेम मरहम है
हर दर्द का
आजमा कर देखें
हर घाव भरता ।
बहुत ही सुंदर भाव हैं'
बधाई,
सादर,
अमिता कौंडल

Madhuresh ने कहा…

सब-के सब बहुत अच्छे!!
पहली बार आना हुआ, बहुत अच्छा लगा!
सादर,
मधुरेश

सारिका मुकेश ने कहा…

वाह, क्या बात है!!

सब-के सब बहुत अच्छे!..…रोचक और पठनीय! आपको हार्दिक बधाई और धन्यवाद!
सादर/सप्रेम
सारिका मुकेश