बुधवार, 8 अगस्त 2012

प्रेम का घर / मैं नारी सरिता- सी


प्रेम का घर
1-डॉ.भावना कुँअर
1.
पल भर में
टूटकर बिखरे
सुनहरे सपने
किससे कहूँ
घायल हुआ मन
रूठे सभी अपने।
2.
हिरण बन
न जाने  कहाँ गई
वो प्यार भरी बातें
फूटते अब
जहर बुझे बाण
जो हरते हैं प्राण।
3.
मन का कोना
ख़ुशबू नहाया -सा
सुध बिसराया- सा
न जाने कैसे
भाँप गया जमाना
पड़ा सब गँवाना।
4.
प्रातः- किरण
कह जाती चुपके
कुछ प्यारे से छंद,
छलिया हवा
आहट बिन आती
भाव चुरा ले जाती।
5.
लड़ती रही
जीत की उम्मीद में
लहरों से हमेशा
यूँ फेंकी गई
भँवर के भीतर
चकराती ही रही  ।
6.
खोते हैं हम
ज्यादा की चाहत में
दामन की खुशियाँ
गुज़रे वक़्त
रह-रह रुलाएँ
साजन की बतियाँ।
7.
प्रेम का घर
बड़े अरमानों से
बनाया था हमने
चढ़ गया वो
ले गाजे -बाजे संग
अहं की बेदी पर।
8.
किये थे वादे
निभाएँगे जीवन
बस तुम ही संग
मगर टूटा
झूठा प्यार का भ्रम
हिस्से में आया ग़म।
-0-
मैं नारी सरिता- सी
2- कमला निखुर्पा
1
सरिता हूँ मैं
बाँधना मत मेरे
जीवन प्रवाह  को
उफनूँगी मैं
तोड़ दूँगी किनारे
बहा ले जाऊँगी मैं ।
2
यूँ ना कहना
सदानीरा सरिता
क्यों कहर है ढाती
छेड़ा तुम्ही ने
भोली कुदरत को
भुगतोगे तुम ही ।
3
कभी ना लेना
तुम मेरी परीक्षा
मिली है मुझे शिक्षा
बहती रहो
कलकल के गीत
नित सुनाती रहो।
4
कितने खेल
खेलते रहे तुम
जीतते रहे तुम
हारी हूँ मैं तो
हार के भी हँसी मैं
जीत के तुम रोए ।
5
चलूँ मैं कैसे ?
सदियों से जकड़ी
ये संस्कारों की बेड़ी
रुके कदम
गलेगा लौह अब 
तपके निकलूँगी ।
6
बिटिया बनी
बचपन में झूली
पत्नी हो इठलाई
ब्याह के आई
अधूरी थी अब भी
माँ बनी पूर्ण  हुई ।
7
दूर हटाई
मैली ये चदरिया
मिले मोहे रामजी
मिले रहीम
खुद से ही मिली मैं
खुदा से मिलकर ।
-0-

13 टिप्‍पणियां:

RITU BANSAL ने कहा…

बहुत सुन्दर ..

sushila ने कहा…

एक से एक शानदार सेदोका हैं। दोनों कवयित्रियों को बहुत बधाई !

Manju Gupta ने कहा…

जीवन के यथार्थ को दर्शाती उत्कृष्ट रचनाएँ .
कमलाजी , भावना जी को बधाई .

Sarika Mukesh ने कहा…

सभी सेदोका बहुत अच्छे लगे; भावना जी और कमला जी को साधुवाद!
सारिका मुकेश

Sarika Mukesh ने कहा…

प्रातः- किरण
कह जाती चुपके
कुछ प्यारे से छंद,
छलिया हवा
आहट बिन आती
भाव चुरा ले जाती।
....
फेंकी थी जब
मैली ये चदरिया
मिले मोहे रामजी
मिले रहीम
खुद से ही मिली मैं
खुदा से मिलकर ।
....
सभी सेदोका बहुत अच्छे लगे; भावना जी और कमला जी को साधुवाद!
सारिका मुकेश

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

सभी सेदोका बहुत भावपूर्ण है.

खोते हैं हम
ज्यादा की चाहत में
दामन की खुशियाँ
गुज़रे वक़्त
रह-रह रुलाएँ
साजन की बतियाँ।

चलूँ मैं कैसे ?
सदियों से जकड़ी
ये संस्कारों की बेड़ी
रुके कदम
गलेगा लौह अब
तपके निकलूँगी ।

भावना जी और कमला जी को बहुत बधाई.

Krishna ने कहा…

सभी सेदोका बहुत खूबसूरत
भावना जी और कमला जी को बहुत बधाई
कृष्णा वर्मा

Rajesh Kumari ने कहा…

दोनों सेदोका रचनाएं अतिउत्तम एक से बढ़कर एक -------जन्माष्टमी की शुभकामनाएं

Suresh kumar ने कहा…

सभी सेदोका बहुत अच्छे लगे; भावना जी और कमला जी को बहुत - बहुत बधाई.......
 श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ.......

मन के - मनके ने कहा…

जीवन के यथार्थ व सत्य के बीच बहुत बडी खाई होती है.
अहसासों के साथ प्रस्तुत किया है.

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

Sabhi ka bahut2 aabhaar or kamala ji ko bahut2 badhai khubsurat sedoka ke liye...

ज्योत्स्ना शर्मा ने कहा…

खोते हैं हम
ज्यादा की चाहत में
दामन की खुशियाँ
गुज़रे वक़्त
रह-रह रुलाएँ
साजन की बतियाँ।

चलूँ मैं कैसे ?
सदियों से जकड़ी
ये संस्कारों की बेड़ी
रुके कदम
गलेगा लौह अब
तपके निकलूँगी ।....बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति .....बहुत बहुत बधाई ...भावना जी को और कमला जी को ...

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

सभी सेदोका बहुत अच्छे और भावपूर्ण लगे; भावना जी और कमला जी को बहुत - बहुत बधाई.