शनिवार, 4 अगस्त 2012

प्यास बैठी आँगन


देवेन्द्र नारायण दास, महासमुन्द (छत्तीस गढ़)
1
तुम आँधी- से
विद्रोही बनकर
ज़रा लड़ना सीखो
जीवन-पथ
सदा काल-चक्र-सा
तुम चलना सीखो ।
2
पूनम -रात
फगुनाया मौसम
चूड़ियों की खनक
तृषा बहुत
प्यास बैठी आँगन,
तुम बोलो, कुछ मैं ।
3
रंग-बिरंगे
जीवन के सपने
आशा दौड़ती रही
जीवन भर
सब दौड़ते रहे
हाँफ़ते बदहवास
4
धूप -गठरी
आँगन में बिखरी
लेकर आया रवि
शीत ॠतु में
रानी बन जाती है
गर्मी में झुलसाती है ।
5
मौन -धेनु-सी
हाँफ़ती दोपहरी
तपती हवा चले
जेठ मास की
लौट के आया नहीं
मौसम प्यार -भरा ।
6
फूल-फूल में
वासन्ती इठलाती
उजड़े जीवन में
आशा जगाती
बहार आहट की
पीड़ा मेरी हती ।
7
सही कविता
अँधेरे के खिलाफ़
सूरज उगाती है,
अन्धकार से
सबको लड़ना है
मुझे भी  व तुम्हें भी ।
-0-

7 टिप्‍पणियां:

Rajesh Kumari ने कहा…

बहुत सुन्दर एक से बढ़कर एक इस विधा के नियमो का भी उल्लेख कर देते तो हमे भी सीखने का मौका मिल जाता

त्रिवेणी ने कहा…

राजेश कुमारी ! इस लिंक पर सेदोका के नियम पहले ही दे दिए गए थे । कृपया जब समय मिले तो देख लीजिएगा -
http://trivenni.blogspot.in/2012/07/blog-post_2105.html

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

सन्देशप्रद और ऊर्जा जगाते सेदोका...
तुम आँधी- से
विद्रोही बनकर
ज़रा लड़ना सीखो
जीवन-पथ
सदा काल-चक्र-सा
तुम चलना सीखो ।

शुभकामनाएँ.

बेनामी ने कहा…

सभी सुन्दर भावपूर्ण सेदोका
कृष्णा वर्मा

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

सभी सेदोका बहुत अच्छे हैं...बधाई...।

Tuhina Ranjan ने कहा…

bhaavpurna sedoka.. :)

Tuhina Ranjan ने कहा…

josh jagaate.. sundar.. :)