रविवार, 16 सितंबर 2012

बाँधे राष्ट्र-मन को (ताँका )



सुशीला शिवराण
1
स्वभाषा बिन
कहाँ सुख-सम्मान
दिल की बात
पराई भाषा में तो
लगे शूल समान !
2
गौरवमय
इतिहास हिन्दी का
है न्यारी-प्यारी
तकनीक समृद्ध
छंदों की फुलवारी।
3
उपेक्षित क्यों ?
अपने ही घर में
हमारी हिन्दी
कहाती राजभाषा
राज करे अंग्रेज़ी !
4
मातृभाषा तो
मातृभूमि की आन
संकल्प करें-
अपना कर हिन्दी
करें देश- सम्मान ।
5
सम्पर्क भाषा
जोड़े जन-जन को
बाँधे सूत्र में
जो समूचे राष्ट्र को
बाँधे राष्ट्र-मन को ।
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8 टिप्‍पणियां:

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

बहुत सुंदर व भावपूर्ण तांका !

Rachana ने कहा…

हिंदी के बारे में सुंदर और उत्तम विचार जी हाँ सही कहा है की आज अपने ही घर में उपेक्षित है .बधाई आपको
रचना श्रीवास्तव

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

जिन देशॊं में हम अपनी मातृभाषा के प्रति सम्मान की भावना देखते हैं, वे देश आज विकास के पथ पर बहुत आगे हैं । अधिक-से-अधिक भाषा जानिए, पर प्रधानता अपनी मातृभाषा को देनी चाहिए...। स्व-भाषा प्रेम से भरी इन पंक्तियों के लिए बधाई...।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत सुंदर और सार्थक तांका॥

ऋता शेखर 'मधु' ने कहा…

हम हिन्दी में सोचते हैं,हिन्दी को प्यार भी करते हैं लेकिन किसी के सामने अपनी भाषा बोलते हुए क्यूँ सकुचा जाते हैं...सार्थक तांका के लिए बधाई !!
हिन्दुस्तान हमारा हिन्दी हमारी

त्रिवेणी ने कहा…

पूणे से डॉ क्रान्तिकुमार ( केन्द्रीय विद्यालय की पूर्व प्राचार्या) की टिप्पणी - "बांधे राष्ट्र मन " सुशीला शिवराण की रचनाएं अनुपम ,सहज दिल को छू लेती हैं."दिल की बात -------शूल सामान " या "उपेक्षित क्यों -------"मार्मिक हैं.,सोचने को विवश करते हैं.

बेनामी ने कहा…

बहुत सुन्दर सारपूर्ण ताँका...सुशीला जी बधाई
कृष्णा वर्मा

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

बस राजभाषा ही बन पाई हिन्दी, देश की भाषा तो अब भी अंग्रेजी ही है...
उपेक्षित क्यों ?
अपने ही घर में
हमारी हिन्दी
कहाती राजभाषा
राज करे अंग्रेज़ी !

हिन्दी दिवस बस एक मज़ाक भर है, उपेक्षित होने का प्रचार करती हुई. बस एक पखवाडा हिन्दी के नाम फिर वही अंग्रेजी... बहुत उत्कृष्ट ताँका, शुभकामनाएँ सुशीला जी.