सोमवार, 17 सितंबर 2012

नभ से पूछो ( चोका)


चोका
1-डॉ सुधा गुप्ता
1-बेला के फूल
बेला के फूल
किसी सलोनी भोर
मेरी मेज़ पे
कोई रख गया था
आकर देखा :
सिर्फ़ चन्द फूल थे
मोतीसी आब
महमह गमक
बेलाफूलों ने
सहसा लुभा लिया
प्यार से सूँघा
हाथ में ले सराहा
क्षण भर में
शैशव लौट आया
मेरे घर थे
बेला के कई झाड़
भोर होते ही
सबसे पहले मैं
पहुँच जाती
उन सबके पास
ढेर के ढेर
खिले पड़े होते थे
बेला के फूल
गोरे गदबदे वे
मोह लेते थे
जीवन बीत गया
वैसी सुगंध
और वैसी ताज़गी
फिर न मिली
अनुपम थे फूल
अनोखा कालखण्ड 
-0-
2-नभ से पूछो - डॉ सुधा गुप्ता

नभ से पूछो
बिछुड़ने का दर्द
सहता है जो
हर काली रात में
कब से टंगा
औंधा, अकेला, मौन
मुद्दत हुई
एक वही कहानी
कोई न कोई
प्यारा उसका तारा
सदा के लि
फूलझड़ी बिखरा
जुदा हो जाता
साक्षी बना असंग
मूक, निरीह !
टूटने का दु:ख भी
चुप सहता
थोड़ी देर जलता
फिर राख हो जाता
-0-
चोका-डॉ आरती स्मित

1-सृष्टि- चक्र


झड़ते पत्ते
सुनाते हैं दास्तान
पतझर की
शिशिर का विषाद !
नव कोंपलें
सुनाती हैं कहानी
मधुमास की
उन्माद का सवेरा!
सृष्टि- चक्र की
शाश्वत रूपरेखा
होती प्रकट
जीवन- मरण में
ऋतु -चक्र के साथ
-0-
2-कामना- डॉ आरती स्मित
तुम्हें देखा है
जाना है, परखा है
प्यार  किया है
तुम्हारे वज़ूद से
अतिसुंदर
अलौकिक, अनूठी
तुम होती हो
शब्द -सीमा से परे
मैं विषादित
सुन-सुनकर कि
तुम्हारे चर्चे
कुरूपता बखाने ।
मानव भूला
जीने के रंगढंग
भूलता जाता
दिव्य शक्ति अपनी।
री  ज़िंदगी!
मैंने तुम्हें चाहा है;
तुमसे चाहा
फ़कत इतना कि
हो नष्ट, भ्रष्ट
जग की विभीषिका
सरला ,तुम!
हो जाओ सर्वलभ्य
सुन्दरी सुचेतासी।
-0-
  

4 टिप्‍पणियां:

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

बेला की सुगंध न जाने कितनों को अपने बचपन में ले गई होगी...। दुर्भाग्यवश आज के नौनिहाल इन सुगंधों से वंचित से हो गए हैं...।
सुधा जी की लेखनी तो हमेशा से मनमोहक रही है, उनकी तारीफ़ करना सूरज को दिया दिखाने जैसा लगता है...। सो उनका आभार...।
बाकी चोका भी बहुत अच्छे हैं...। हार्दिक बधाई...।

प्रियंका

Rachana ने कहा…

बेला के फूल
गोरे गदबदे वे
मोह लेते थे
जीवन बीत गया
वैसी सुगंध
और वैसी ताज़गी
फिर न मिली
अनुपम थे फूल
अनोखा काल–खण्ड
सुधा जी आप का लिखा कुछ भी पढ़ते पढ़ते में उसके भावों के साथ बहने लगती हूँ .ऐसा मोहक प्रवाह होता है आपके शब्दों में .
आपका आभार की आप हमको इतना सुन्दर पढने के देती है
सादर
रचना

शाश्वत रूपरेखा
होती प्रकट
जीवन- मरण में
ऋतु -चक्र के साथ
आत्री जी ये चक्र ही सच है जीवन में बाकि तो बस ................
सुन्दर लेखन के लिए बधाई
रचना

बेनामी ने कहा…

बहुत सुन्दर रचनाएं। पढ़ कर मन पुलकित हुआ।
सुधा जी आरती जी आप दोनों को हार्दिक बधाई।
कृष्णा वर्मा

ज्योत्स्ना शर्मा ने कहा…

जीवन दर्शन को सरल शब्दों में अभिव्यक्त करते मोहक चोका.....
जीवन बीत गया
वैसी सुगंध
और वैसी ताज़गी
फिर न मिली
अनुपम थे फूल
अनोखा काल–खण्ड ....बहुत सुंदर प्रभावी रचनायें पढ़ने का अवसर देने के लिये हृदय से आभार दीदी....तथा ..

शाश्वत रूपरेखा
होती प्रकट
जीवन- मरण में
ऋतु -चक्र के साथ...शाश्वत सत्य को प्रकट करती सुंदर प्रस्तुति के लिये बहुत आभार ...बधाई...सादर ...ज्योत्स्ना