शुक्रवार, 19 अक्तूबर 2012

भाव और भाषा



डॉ जेन्नी शबनम

भाषा-भाव का
आपसी नाता ऐसे     
शरीर-आत्मा 
पूरक होते जैसे
भाषा व भाव
ज्यों धरती-गगन 
चाँद-चाँदनी
सूरज की किरणें
फूल-खुशबू
दीया और बाती 
तन व आत्मा 
एक दूजे के बिना 
सब अधूरे
भाव का ज्ञान 
भाव की अभिव्यक्ति 
दूरी मिटाता 
निकटता बढ़ाता,
भाव के बिना 
सबंध हैं अधूरे
बोझिल रिश्ते 
सदा कसक देते  
फिर भी जीते 
शब्द होते पत्थर 
लगती चोट 
घुटते ही रहते,
भाषा के भाव 
ह्रदय का स्पंदन
होते हैं प्राण
बिन भाषा भी जीता 
मधुर रिश्ता 
हों भावप्रवण तो 
बिन कहे ही 
सब कह सकता
गुन सकता,
भाव-भाषा संग जो 
प्रेम पगता 
ह्रदय भी जुड़ता
गरिमा पाता
नज़दीकी बढ़ती 
अनकहा भी 
मन समझ जाता 
रिश्ता अटूट होता !

5 टिप्‍पणियां:

amita kaundal ने कहा…

भाषा और भाव का मधुर नाता बहुत सुन्दरता से प्रस्तुत किया है जेन्नी जी आपने, सच मैं भाव के बिना भासः पत्थर सामान है सुंदर रचना के लिए धन्यवाद और बधाई
सादर,
अमिता कौंडल

Krishna Verma ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना। जेन्नी जी को बधाई।

बेनामी ने कहा…

"गुन सकता,

भाव-भाषा संग जो

प्रेम पगता

ह्रदय भी जुड़ता

गरिमा पाता

नज़दीकी बढ़ती

अनकहा भी

मन समझ जाता

रिश्ता अटूट होता !"

बहुत सुन्दर रचना!

जेन्नी जी को बधाई।
डॉ सरस्वती माथुर

ज्योत्स्ना शर्मा ने कहा…

बहुत प्रभावी प्रस्तुति ..
बिन भाषा भी जीता
मधुर रिश्ता
हों भावप्रवण तो
बिन कहे ही
सब कह सकता
गुन सकता,
भाव-भाषा संग जो
प्रेम पगता
ह्रदय भी जुड़ता
गरिमा पाता.....अति सुन्दर !!

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

बिन भाषा भी जीता
मधुर रिश्ता...
क्या बात कही है...! बहुत खूब...! मेरी बधाई...।
प्रियंका