बुधवार, 16 जनवरी 2013

माहिया


1-डॉ.भावना कुँअर
1
उड़ता याद- परिंदा 
तम से पंख लिये

कैसे रहता जिंदा

-0--

2-कृष्णा वर्मा

1
मुनियों का देश रहा
नारी मुक्त कहाँ
जीवन भर दर्द सहा ।
2
खुद को जो समझाते
हर इक दूजे को
दोषी ना ठहराते
3
बेटी अपनी होती
यूँ ही सत्ता फिर
क्या बेफिकर सोती ?
4
बेटी सब की साँझी
नैया ना डूबे
सब बन जाओ माझी
-0-

4 टिप्‍पणियां:

Subhash Chandra Lakhera ने कहा…

" बेटी सब की साँझी / नैया ना डूबे / सब बन जाओ माझी " काश, कृष्णा जी यह सन्देश उन लोगों तक भी पहुंच पाता जो आज भी मौका मिलते ही बेटियों का जीवन नारकीय बनाने से बाज नहीं आते। खैर,इतनी सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए आपको बधाई! - सुभाष लखेड़ा

sushila ने कहा…

बहुत ही सुंदर माहिया। दोनों कवयित्रियों को बधाई !

Rachana ने कहा…

aap dono ki lekhni ko kya kahen sunder shabon ka chunav kiya hai bhav bhiuttam hain badhai
rachana

ज्योत्स्ना शर्मा ने कहा…

सामयिक सशक्त प्रस्तुति ...बहुत बधाई डॉ भावना जी एवं कृष्णा वर्मा जी को !