सोमवार, 30 सितंबर 2013

बगिया में दूब रची



डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा 
1
रचना क्या ख़ूब रची !
दुनिया में नारी ,
बगिया में दूब रची ।
2
रिश्ता यूँ टूट गया 
पश्चिम ना अपना 
पूरब भी छूट गया।
3
किस पर इल्जाम रखें 
बीज बबूल दिए 
कैसे अब आम चखें।
4
छोड़ें भी नादानी 
कदर यहाँ हमने 
खुद अपनी  नाजानी |
5
उनसे जब प्यार हुआ 
साँसें गीत बनीं 
जीवन उपहार हुआ ।
6
कैसा उपहार दिया 
बोल गए कान्हा 
लो तुमको तार दिया ।
7
कान्हा मत हास करो 
तार न अब चलते
मन आस-उजास भरो !
-0-

7 टिप्‍पणियां:

मंजुल भटनागर ने कहा…

रिश्ता यूँ टूट गया
पश्चिम ना अपना
पूरब भी छूट गया। बहुत सुन्दर

Krishna ने कहा…

2
रिश्ता यूँ टूट गया
पश्चिम ना अपना
पूरब भी छूट गया।
बहुत सुन्दर माहिया ज्योत्स्ना जी.....बधाई !

सुनीता अग्रवाल "नेह" ने कहा…

वाह्ह बहुत ही सुन्दर माहिया .. सभी ..बधाई ..:)

Subhash Chandra Lakhera ने कहा…

" छोड़ें भी नादानी /कदर यहाँ हमने /खुद अपनी ना जानी | " सभी माहिया बहुत ही सुन्दर ! ज्योत्स्ना जी, बहुत - बहुत बधाई !

ज्योति-कलश ने कहा…

bahut bahut dhanyawaad aa sunita ji ,Krishna ji evam manjul ji ...aapake bol anmol hain mere liye ...:)

saadar
jyotsna sharma

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

रिश्ता यूँ टूट गया
पश्चिम ना अपना
पूरब भी छूट गया।
मार्मिक किन्तु सत्य...|
बधाई...खूबसूरत माहिया के लिए...|

प्रियंका

ज्योति-कलश ने कहा…

bahut aabhaar Priyanka ji !

jyotsna sharma