मंगलवार, 17 दिसंबर 2013

धूप ,सूरज हवा और कोहरा


डॉ सुधा गुप्ता
1-धूप
1
सुबह  बस
ज़रा-सा झाँक जाती
दोपहर आ
छत के पीढ़े बैठ,
गायब होती धूप ।
2
जाड़े की धूप
पुरानी सहेली-सी
गले मिलती
नेह-भरी ऊष्मा  दे
अँकवार भरती 
3
झलक दिखा
रूपजाल में फँसा
नेह बो गई
मायाविनी थी धूप
छूमन्तर हो गई ।
-0-
2-हवाएँ
1
भागती आई
तीखी ठण्डी हवाएँ
सूचना लाईं
शीत-सेना लेकर
पौष ने की चढ़ाई ।
-0-
3-सूरज
1
मेरे घर में
मनमौजी सूरज
देर से आता
झाँक, नमस्ते कर
तुरत भाग जाता ।
2
भोर होते ही
मचा है हड़कम्प
चुरा सूरज-
चोर हुआ फ़रार
छोड़ा नहीं सुराग।
3
सूरज-कृपा
कुँए- से आँगन में
धूप का धब्बा
बला की शोखी लिये
उतरा, उड़ गया।
-0-
4-कोहरा
1
शीत –ॠतु का
पहला कोहरा लो
आ ही धमका
अन्धी हुई धरती
राह बाट है खोई ।

-0-

12 टिप्‍पणियां:

Subhash Chandra Lakhera ने कहा…

सुबह - सवेरे डॉ सुधा गुप्ता जी रचित मौसमी " तांका " पढ़े। बहुत आनंद आया। धूप, सूरज,
हवा और कोहरा - इन सभी से बात हो गयी। डॉ सुधा जी को बधाई ! इतना और कहना चाहूंगा :
"धूप सूरज
हवा और कोहरा
दिखा चेहरा
यहॉ इन सभी का
धन्यवाद आपका। "

Krishna ने कहा…

प्राकृति के मनोरम रूप से सुसज्जित उत्तम ताँका सुधा जी हार्दिक बधाई !

Dr.Anita Kapoor ने कहा…

जाड़े की धूप
पुरानी सहेली-सी........बहुत सुंदर चित्रण.....सारे ही तांका बेमिसाल हैं।

ज्योति-कलश ने कहा…

सुन्दर बिम्ब लिए बहुत सुन्दर ताँका हैं ...पीढ़े बैठी पुरानी सहेली सी मायाविनी धूप लाजवाब है तो ..कासद हवाएँ अनुपम ...मनमौजी सूरज का चोरी हो जाना आह्लादित कर गया ...कोहरे भरे दिन में राह बाट ही नहीं मेरे शब्द भी खो गए ..अब सोच रही हूँ ,,क्या कहूँ इसके सिवा ..कि अद्भुत है दीदी का आगमन ....सादर नमन वंदन के साथ ..
ज्योत्स्ना शर्मा

Manju Gupta ने कहा…

प्रकृति पर सुन्दर हाइकु

बधाई

सीमा स्‍मृति ने कहा…

मेरे घर में
मनमौजी सूरज
देर से आता
झाँक, नमस्ते कर
तुरत भाग जाता ।

अनुभव व गहराई से ही इतनी सुन्‍दर चित्रात्‍मकता आ सकती है कि सूरज भी एक बच्‍चा बन जाता है। दीदी आप को हार्दिक बधाई।

Pushpa mehra ने कहा…

dhuup aur hava to manmauji hai jinaka roop apake takon me.n bandha hai.kohara to simat hi nahin paya isiliye fail kar suraj aur
hava ko khojane aya hai. dhoop, suraj hava aur kohara ka sunder
chitran hai.didi apako hardik badhai.
pushpa mehra.

sushila ने कहा…

सुधा दी को पढ़ना एक अलग आनंद, एक अलग अनुभव देता है। ्मोहक बिंब, अत्यंत सुंदर सृजन !

Manju Mishra ने कहा…

पीढ़े पर बैठती धूप, शीत सेना लेकर चढ़ाई करता पौष, नमस्ते करके भागता मनमौजी सूरज …… क्या एक से बढ़ आकर एक अनूठी कल्पनाएँ हैं, उपमाएं हैं …
आदरणीया सुधा जी की रचनाएं "जहाँ न पहुंचे रवि, वहाँ पहुंचे कवि " की उक्ति को पूरी तरह से चरितार्थ करती हैं।

www.manukavya.wordpress.com

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

अत्यंत सजीव, अत्यंत ही सुन्दर … धूप, हवा, सूरज व कोहरे का रूप!
धूप कभी नटखट बच्ची सी, कभी पुरानी सखी सी तो कभी मायाविनी सी… बिलकुल नए रूपों में … मन को बहुत ही भाई।
हवा दौड़ती भागती ख़बरी ,
सूरज मनमौजी की मनमानी....
और अंधी हो गयी धरती, खोए सभी रस्ते.... हुई ज्यों ही पहले कोहरे की मेहरबानी !

सुधा दीदी जी की कलम.... बस वाह ही वाह ! बिलकुल लगा ही नहीं कि 'ताँका ' पढ़ रहे हैं या परियों की कहानी सुन रहे हैं …बहुत-बहुत सुन्दर !!!

~सादर
अनिता ललित

Jyotsana pradeep ने कहा…

भागती आई
तीखी ठण्डी हवाएँ
सूचना लाईं
शीत-सेना लेकर
पौष ने की चढ़ाई

मन को छू गया।

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

मौसम के इतने खूबसूरत बिम्ब, प्रतिबिम्ब से सजी इन पंक्तियों के लिए बस `वाह!' ही निकलता है...|
आभार और बधाई...|

प्रियंका