बुधवार, 11 नवंबर 2015

अंक- 656



1-पुष्पा मेहरा 

ऐ! दीप-ज्योति
तुम चिर  प्रदीप्त
निष्कंप बनो
झंझावातों से लड़ो
कभी ना हारो  |
मणिमय बंधन
प्यारे ,ये न्यारे
मुड़ें न कभी टूटें,
नित चमकें
सुख - धारा  में  डूबें
नित हकें
मन से मन  मिलें
रहें निर्मल
कल्मष- दोष हरो
गिरिमन दो
ज्योतिर्मय जग  हो
कंचनमय
तप:पूत  पावन
ये  धरा रहे
लहरों  में  झलको
नभ को छू लो
उन्मन  मत  रहो
कंदील बनो
उड़के ,आगे बढ़ो
अमा हर लो
अज्ञान पीर हरो
नेह अनंत भरो
-0-
2- सुशीला शिवराण

छँट जाएँगे
घिर आए अँधेरे
बस यूँ करो
एक प्रीत का दीप
हृदय धरो
खिंचे आएँगे देखो
सारे जुगनू
तिमिर हरने का
यत्न तो करो
कहता है चाँद भी
कहाँ एक-से
रहे दिन सब के
कभी चाँदनी
कभी मिले अँधेरे
चलता रहा
कभी तारों के संग
कभी अकेले
अँधेरों की गोद में
उजास पाले
यूँ ही ढला जग में
यूँ ही चला मग में।
-0-

7 टिप्‍पणियां:

Pushpa mehra ने कहा…

एक दीपक -सामाजिक चेतना का एक उद्घोष, अनेक को प्रकाशित करने और जागृत करने की शक्ति रखता है इस भावना
पर आधारित चोका सुशीला जी के ह्रदय की सुंदरतम अनुभूति है |बधाई
पुष्पा मेहरा

मंजूषा मन ने कहा…

अति सुन्दर पुष्पा जी। हार्दिक बधाई स्वीकार करें।

अति सुन्दर सुशीला जी। बहुत बहुत बधाई।

kashmiri lal chawla ने कहा…

चेतना का प्रतीक का बढिया चित्रन

Krishna ने कहा…

बहुत बढ़िया चोका...पुष्पा जी, सुशीला जी हार्दिक बधाई!

ज्योति-कलश ने कहा…

निर्मल,पावन भावों से भरी दोनों चोका रचनाएँ बहुत सुन्दर हैं ..आदरणीया पुष्पा दीदी एवं प्रिय सखी सुशीला जी को बहुत-बहुत बधाई !!

Jyotsana pradeep ने कहा…

dono rachnayen behad khoobsurat hain ...man ko mohne wali ......aadarniya .pushpa ji evam susheela ji ko haardik badhai !

Pushpa mehra ने कहा…

'त्रिवेणी' में मेरी रचना को स्थान देने हेतु सम्पादक द्वय का हार्दिक आभार,सराह्नायुक्त प्रतिक्रिया देने के लिए मित्र रचनाकारों को ढेर सारा धन्यवाद |


पुष्पा मेहरा