मंगलवार, 15 दिसंबर 2015

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मंजूषा मन

सारी उमर
माँगी थी तुमसे
माँगे हमने
बस कुछ ही पल
मन की बातें
कहने की खातिर
घर न द्वार
न ही कोई तोहफा
दिल चाहिए
बस खुश रहने
पर नाहक
तपन हमें मिली
जलते रहे
जलन ही तो मिली
कह जो पाते
घुट न मर जाते
रत्ती भर जो
शीतलता पा जाते
उमर भर
फिर जी पाते हम
टूट न जाते हम।

12 टिप्‍पणियां:

Anita Manda ने कहा…

वाह मंजूषा जी। बहुत खूब।

Sudershan Ratnakar ने कहा…

बहुत सुंदर चोका।

Krishna ने कहा…

बहुत सुन्दर चोका मंजूषा जी.... बधाई!

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

kah na pane ka dukh hamesha salta rahta hai par ham kahi ruk jate hain apne sanskaron ke karan or khud men hi jalte rahte hain bahut achha choka likha aapne hardik badhai aapko...

मेरा साहित्य ने कहा…

शीतलता पा जाते
उमर भर
फिर जी पाते हम
टूट न जाते हम।
bahut khoob sunder abhivyakti
badhai
rachana

Unknown ने कहा…

kya kahna mann ki abhiyakti prakat karna koi appse sikhe

Jyotsana pradeep ने कहा…

शीतलता पा जाते
उमर भर
फिर जी पाते हम
टूट न जाते हम।
वाह मंजूषा जी। बहुत खूब।
बहुत सुन्दर चोका ... बधाई!

Dr.Purnima Rai ने कहा…

Congrates!!बहुत खूब!!

Dr.Purnima Rai ने कहा…

Congrates!!बहुत खूब!!

मंजूषा मन ने कहा…

आप सभी का हार्दिक आभार इस प्रयास को पसन्द करने हेतु।

आभार

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

बहुत मर्मस्पर्शी चोका...बहुत बधाई...|

ज्योति-कलश ने कहा…

marmsparshii prastuti ...bahut badhaii !!