कृष्णा
वर्मा
1
सिंदूरी
गगन हुआ
तड़के
किरणों ने
अम्बर का भाल छुआ।
2
कैसा
जादू डाला
पल भर
में खोया
वो दिल भोला
भाला।
3
मन
रेगिस्तान हुआ
मेरे
अपनों ने
जब से
प्रस्थान किया।
4
किस्मत के घट
फूटे
जब-जब जीवन में
अपने
हमसे छूटे।
5
ना मौन कभी
बोले
फिर भी जियरा
के
गोपन सारे
खोले।
-0-
13 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर माहिया हैं सभी...मर्मस्पर्शी...| मेरी बधाई स्वीकारें...|
मन रेगिस्तान हुआ
मेरे अपनों ने
जब से प्रस्थान किया
बिल्कुल सही अपनों के बिना मन रेगिस्तान ही तो होता है
बहुत सुंदर, मन को भावुक करते माहिया...कृष्णा दीदी !
इस सुंदर सृजन के लिए आपको बहुत बधाई !!!
~सादर
अनिता ललित
सुन्दर ..भाव भरे माहिया !
हार्दिक बधाई दीदी !
कृष्णा जी सुन्दर भावपूर्ण सृजन के लिए बधाई ।
सुंदर सृजन !.मर्मस्पर्शी.....
मन रेगिस्तान हुआ
मेरे अपनों ने
जब से प्रस्थान किया |
आपको बहुत बधाई कृष्णा जी !!!
प्रात की लालिमा समेटे गगन के मोहक जाल में सब कुछ भुला बैठा मानव मन जैसे-जैसे अपनी आँखें खोलता जाता है वैसे -वैसे सामाजिक और पारिवरिक सप्तरंगी रिश्तों के मोहजाल में बंध कर भी उन्हीं से उपेक्षित होता रहता है तो केवल मौन ही उस दर्द की व्यथा व्यक्त करने में सच्चा साथी बनता है|सुबह की लालिमा की तरह ही तो जीवन और सम्बन्ध हैं कृष्णा जी आपके माहिया साथ छोडती लाली और सम्बन्धों का साथ छोड़ती प्रगाढ़ता के भाव से भरे हुए हैं|(जाने या अनजाने में)
पुष्पा मेहरा
बहुत सुंदर मोहक माहिया, कृष्णा जी को बधाई।
कृष्णा जी सभी माहिया दिल को छूने वाले हैं मिलन विछुडन की गाथा कहते ।यह वाला तो मन में बस गया .... मन रेगिस्तान हुआ/ मेरे अपनों ने/ जब से प्रस्थान किया ।।बधाई सुन्दर कृति के लिये ।
कृष्णा जी बहुत-बहुत बधाई सुन्दर माहिया के लिए ।
कृष्णा जी सभी माहिया दिल को छूने वाले हैं मिलन विछुडन की गाथा कहते ।यह वाला तो मन में बस गया .... मन रेगिस्तान हुआ/ मेरे अपनों ने/ जब से प्रस्थान किया ।।बधाई सुन्दर कृति के लिये ।
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