रविवार, 10 फ़रवरी 2019

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1- मन-दर्पण
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

मन-दर्पण
धूल इतनी जमी
अपनी कमी
नज़र नहीं आई
उम्र गवाँई
जीभर औरों पर
धूल उड़ाई
रिश्तों की पावनता
की तार- तार
कभी लाज न आई।
प्यार है पाप
उदारता सन्ताप
चिल्लाते रहे
मन की कालिमा को
तर्क -शर से
सही बताते रहे।
आदि से अन्त
यही था सिलसिला
मन आहत
तन  हुआ खंडित
कुछ न मिला
रहे ख़ाली ही हाथ
घुटन घनी
किस लोक जाएँ कि
घाव दिखाएँ
सत्य हुआ था व्यर्थ
झूठ गर्व से भरा।
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15 टिप्‍पणियां:

पूनम सैनी ने कहा…

बहुत सुंदर रचना है गुरु जी।🙏

Dr. Purva Sharma ने कहा…

सच में मन दर्पण ही है...
बहुत ही सुन्दर सृजन
बधाई स्वीकार करें |

Sudershan Ratnakar ने कहा…

आहत मन की व्यथा का सुंदर वर्णन।

Dr.Bhawna Kunwar ने कहा…

Dard bhari gagar

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

ह्रदय का दर्द छलकाता चोका... मन को छू गया, आदरणीय भैया जी।

~सादर
अनिता ललित

सविता अग्रवाल 'सवि' ने कहा…

चोका में रची इतनी सुन्दर रचना है भाई कम्बोज जी हार्दिक बधाई |

Rekha ने कहा…

बहुत सुंदर यथार्थपरक अनुभूति !
हार्दिक बधाई !

Krishna ने कहा…

बहुत मार्मिक दर्द भरा चोका।

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

सच में, बहुत आहत होता है मन...| इस ह्रदयस्पर्शी चोका के लिए और क्या कहूँ...बहुत बधाई...|

बेनामी ने कहा…

मन-दर्पण
धूल इतनी जमी
अपनी कमी
नज़र नहीं आई
उम्र गवाँई
lajavab aur sach
rachana

Jyotsana pradeep ने कहा…


मन की पीड़ा को दर्द में भिगोकर d लिखा गया है ये चोका...पाठक के मन को भीतर तक छू गया भैया जी !!


डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

हृदय की पीड़ा की बेहतरीन अभिव्यक्ति. बहुत भावपूर्ण चोका, बधाई भैया.

सहज साहित्य ने कहा…

आप सभी का हृदय से आभार

bhawna ने कहा…
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bhawna ने कहा…

भावपूर्ण सुंदर चोका