शुक्रवार, 26 अप्रैल 2019

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रमेश कुमार सोनी
1
मेरा खजाना
लूटा जादू आँखों ने
मेरी आँखों से
वशीकरण वाली
मोहनी की मूरत
2
फटी बिवाई
घुँघरू दर्द गाते
भरे बाज़ार
खरीदते रईस ;
पैसे , पैरों में फेंके
3
सपने संग
नींद भी बिक जाती 
बड़े बाज़ार
नींद , रोटी सौतन
बारी-बारी मिलती
4
सत्य साबुत
अनुमान अंधा है
झूठ के गाँव
तंगदिली गलियाँ     
सच अकेला खड़ा
5
बिगुल बजे
सुख के ढोल भी गूँजे
दुःख की अर्थी
कनखियों से झाँके
आँसू , कराह सारे
6
रूप- मदिरा
पानी , बर्फ क्या डालूँ ?
सुर्ख ही पी ली
हुस्न वालों की गली
बहकना है मना
7
रात थकी है
रतजगा किया था
सीटी बजाते
जागते रहो बोले
जग कभी ना जागा !!
8
उठा नींद से
बाँग देता पूरब
गुम सपने
रोटी के बाज़ार में
सपने ही बिकते
9
दुःख कहता-
सुख से रह सुख
मत इतरा
दो दिन मेरा राज
वक्त से समझौता
-0-
जे.पी.रोड – बसना , जिला – महासमुंद [ छत्तीसगढ़ ]
पिन – 493554
मोबाइल – 7049355476 / 9424220209





7 टिप्‍पणियां:

Shiam ने कहा…

प्रिय रमेशकुमार जी ,

आपने ग्राम्य जीवन की सामाजिक कुरीतियों की जो व्यंगात्मक व्याख्या की है अत्यंत मार्मिक है | आपकी लेखिनी में क्रान्ति की चिंगारी है| यह एक दिन अपना रंग अवश्य दिखायेगी | आप बधाई के पात्र है | श्याम त्रिपाठी -हिंदी चेतना

Satya sharma ने कहा…

बहुत ही सार्थक एवं सुंदर तांका

dr.surangma yadav ने कहा…

गहन अर्थ पूर्ण रचनाएँ ।बहुत-बहुत बधाई

Sudershan Ratnakar ने कहा…

बहुत सुंदर ताँका। बधाई

Krishna ने कहा…

बहुत बढ़िया सार्थक तांका...बहुत बधाई रमेश जी।

Jyotsana pradeep ने कहा…


बहुत सुंदर ताँका...बहुत-बहुत बधाई रमेश जी!

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

सभी तांका बहुत अच्छे हैं, हार्दिक बधाई...|