शनिवार, 8 जून 2019

867-जीवन पथ


डॉoजेन्नी शबनम

जीवन- पथ 
उबड़-खाबड़-से 
टेढ़े-मेढ़े-से 
गिरते-पड़ते भी 
होता चलना,
पथ टीले सही 
पथरीले भी 
पाँव ज़ख़्मी हो जाएँ   
लाखों बाधाएँ
अकेले हों मगर 
होता चलना,
नहीं कोई अपना 
न कोई साथी 
फैला घना अँधेरा
डर-डर के 
कदम हैं बढ़ते 
गिर जो पड़े 
खुद ही उठकर   
होता चलना,
खुद पोंछना आँसू
जग की रीत 
समझ में तो आती
पर रुलाती 
दर्द होता सहना   
चलना ही पड़ता !  
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8 टिप्‍पणियां:

Sudershan Ratnakar ने कहा…

बहुत सुंदर । प्रेरणादायी चोका।बधाई जेन्नी जी।

Jyotsana pradeep ने कहा…

बहुत बढ़िया चोका ...आपको हार्दिक बधाई जेन्नी जी !

Jyotsana pradeep ने कहा…

बहुत बढ़िया चोका ...आपको हार्दिक बधाई जेन्नी जी !

dr.surangma yadav ने कहा…

जीवन के कटु यथार्थ का चित्रण तथा मन में आशा जगाता सुन्दर चोका।बधाई जेन्नी शबनम जी।

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

मार्मिक एवं कठोर सत्य! सुंदर अभिव्यक्ति के लिए बहुत बधाई जेन्नी जी!

~सादर
अनिता ललित

नीलाम्बरा.com ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
प्रियंका गुप्ता ने कहा…

यही जीवन की सच्चाई है, दर्द सहते हुए भी चलते ही जाना है |
मेरी हार्दिक बधाई...|

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

उत्साहवर्धन के लिए आप सभी का हृदयतल से धन्यवाद.