गुरुवार, 27 जून 2019

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रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'


1-बिना तुम्हारे

आँधी को रोका
फूत्कार भय त्यागा
नागों को नाथा
यह कैसे हो पाता
बिना तुम्हारे
हम जी पाते कैसे
बिना सहारे !
दंशित नस-नस
चूमके घाव
तुमने मन्त्र पढ़े
विष सदा उतारा
-0-
2-चन्दन-सा जीवन

घृणा थी रौंदी
किसी का दु:ख देखा
तो हिस्सा माँगा,
ज़हर सदा मिला-
खुद पी डाला
चन्दन-सा जीवन
बना कोयला
फिर राख हुआ था
ख़ाक़ हुआ था
सब कुछ देकर
मैंने क्या पाया-
आहें और कराहें
छलनी हुआ सीना।

11 टिप्‍पणियां:

Satya sharma ने कहा…

बहुत ही भावपूर्ण और गहरी संवेदना से भरी चोका भैया जी ।

dr.surangma yadav ने कहा…

भावपूर्ण अभिव्यक्ति ।हार्दिक बधाई ।

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

गहन संवेदनाओं से परिपूर्ण बेहद मर्मस्पर्शी चोका हैं दोनों, मेरी हार्दिक बधाई...|

Krishna ने कहा…

गहन भावपूर्ण अभिव्यक्ति...हार्दिक बधाई।

Sudershan Ratnakar ने कहा…

मन की गहराई से निकले भाव। बेहद मर्मस्पर्शी चोका।

शिवजी श्रीवास्तव ने कहा…

प्रेम और वेदना की भावपूर्ण अभिव्यक्ति के अत्यंत मर्मस्पर्शी चोका।हृदय की गहराइयों से निकले भावों को बहुत सहज रूप से अभिव्यक्त किया है।

ऋता शेखर 'मधु' ने कहा…

आह और वाह...दोनों अनुभूतियों को समेटे मर्मस्पर्शी चोका|

Shashi Padha ने कहा…

प्रेम और पीड़ा को उकेरते हुए चोका | अद्भुत भावाभिव्यक्ति | बधाई आपको |

bhawna ने कहा…

मर्मस्पर्शी चोका भैया।
सादर
भावना सक्सैना

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

भावपूर्ण एवं संवेदनशील चोका. बधाई भैया.

Jyotsana pradeep ने कहा…


बेहद ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति ....हार्दिक बधाई भैया जी!