शनिवार, 25 जुलाई 2020

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रश्मि विभा त्रिपाठी 'रिशू'
1
"धरा! एक अवसर उसे देना चाहिए,
माना कि उसने गलत किया; मगर उसे अहसास भी तो है अपनी गलती का, माँग रहा है माफी, फिर  क्यों नहीं उसे एक बार माफ़ कर देती
"हाँ शायद माफ़ कर देती , अगर मैं कर पाती; पर जो उसने किया, कितना दुखा था मन, जब उसने मुझे निकाल फेंका था अपने मन सेउसे माफ़ करने की गवाही अब मेरा मन देता ही नहीं,



धोखे का शूल
चुभा, मुरझा गया
प्रेम का फूल

-0-
2
"मन की
 मिट्टी में मैंने भरोसे का बीज बोया,
एक रिश्ता अंकुरित हुआ, प्रेम के खाद-पानी से दिनों-दिन उसका स्वरूप बढ़ा,
मैं बेहद खुश थी वो हरियाली देख कर,
पता ही नहीं चला कि.....
जिसे इतनी मेहनत से सींचती रही....
सम्बन्धों के उस शजर में....
कब अविश्वास की दीमक लग गई,
खोखला होकर धराशायी हो गया वह पेड़,
दुबारा क्या यह हरा भरा हो सकेगा ? तुम ही बताओ?


क्यों कटी डाल
रोते रिश्तों के पेड़
लिये सवाल
.
मेघा की आँखों में पानी भर आया, वह खामोश थी उसके लिए ये प्रश्न अनुत्तरित था!
-0-

14 टिप्‍पणियां:

Sudershan Ratnakar ने कहा…

भावपूर्ण हाइबन ।बधाई रश्मि विभा जी।

बेनामी ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया!
मेरी कलम को सृजन हेतु प्रेरित करने के लिए आपकी टिप्पणी का हार्दिक आभार!

सविता अग्रवाल 'सवि' ने कहा…

रश्मि जी दोनों हाईबन सुन्दर सृजन हैं मन में आई बात को हाइकू में बाँध कर घटना से जोड़ा है | हार्दिक बधाई |

प्रीति अग्रवाल ने कहा…

रश्मि जी बेहद सुंदर हाइबन, आपको बहुत बहुत बधाई!👌

Krishna ने कहा…

बहुत सुंदर हाइबन...रश्मि जी बहुत-बहुत बधाई।

बेनामी ने कहा…

मेरा लिखना सार्थक रहा!
मुझे नव सृजन की प्रेरणा देती आपकी टिप्पणी का हार्दिक आभार आदरणीया!

बेनामी ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया!

बेनामी ने कहा…

आपकी टिप्पणी ने मुझमें हाइबन लेखन की इच्छा और प्रबल की है!
आपका हार्दिक आभार आदरणीया!

dr.surangma yadav ने कहा…

बहुत सुन्दर हाइबन ।रश्मि जी हार्दिक बधाई ।

बेनामी ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया।

Dr. Purva Sharma ने कहा…

रश्मि जी हाइबन सृजन के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ । दोनों ही सुंदर, दूसरे ने ज्यादा आकर्षित किया ।
बधाइयाँ

बेनामी ने कहा…

हार्दिक आभार आदरणीया मेरी लेखनी को बल प्रदान करने के लिए!
पुन: आभार!

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

दोनों हाइबन बहुत सुन्दर, बधाई.

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

धोखा और अविश्वास दोनों ही एक के साथ एक फ़्री में मिलते हैं! उसके बाद कब गुलशन वीराने में बदल जाता है...ख़बर ही नहीं होती और हम बेबस से बस बैठे रह जाते हैं!
इस प्रभावशाली अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई आपको, रश्मि विभा जी!

~सादर
अनिता ललित