रविवार, 15 नवंबर 2020

941-आशीष

 रश्मि विभा त्रिपाठी 'रिशू'

बिल्कुल भी नहीं चाहती थी कि आज बाजार जाऊँ ,दिये लेकर आऊँ; फिर उन्हें जलाऊँ और चौखट मुंडेर पर सजाऊँ


पापा के बगैर क्या दीवाली क्या होली
?

सारे त्योहारों की शोभा उनसे ही थी, वे थे इस घर में, तो हर कोना रौशन था यहाँ का अब तो अँधेरों के सिवा यहाँ कुछ भी नहीं दिखता

मन ही मन सोचते हुए घर की चौखट के अंदर सुस्त कदमों से दाखिल हुई

मगर रस्म अदायगी तो करनी ही होगी सोचकर पूजाघर में गई...बेमन से पूजन विधि शुरू की सब कुछ सादे ढंग से... दिये भगवान के आगे ज्यूँ ही रखे...

"बेटी दीप जलाओ..."-चौंककर पीछे मुड़ी

पिता की तस्वीर दीवार पर खामोशी से जैसे कह रही हो -घर में अँधेरा हो, तो कुछ देर बसर हो भी जायेगी ; मगर मन में एक पल भी कभी मायूसी का अँधेरा मत छाने दो...

मन के हर कोने को जगमगाने दो इस खयाल के संग कि पिता घर से तो रुख़सत हो गए, मन से दूर वह कहीं नहीं गए।

"क्या सचमुच आप मुझे देख रहे हैं?"

झिलमिलाती आँखों पर दुपट्टा रख लेती हूँ

थाल से दिया उठाकर पिता के चरणों में रखते हुए बोली-"लीजि रसगुल्ले... हर बार आप लेकर आते थे मेरे लिए, आज मैं लेकर आ हूँ आपके लिए... खाइए ना पापा?" पिता के सामने मिठाई का डिब्बा लेकर खड़ी थी...

आँखें बंद और नम...

अचानक फिर से कानों में गूँजी वही आवाज "वाह! बहुत सुंदर बेटी!"

एक हल्की सी मुस्कान होठों प तैर ग...

आँखें खोलकर देखा, तो सामने वही चेहरा दीवार पर मुस्करा रहा था...दिये की लौ और तेज हो गई... घर रौशनी से नहा उठा... जगमगाई तस्वीर के आगे सर झुका लेती हूँ ।

"सुभाशीष दीजि मुझे" -बन्द आँखों में हजारों सितारे जगमगा उठे...लगा कि रौशनी ने सर पे साया कर दिया...।

आशीष-दीप

तम में सूर्य जगा

उजाला उगा।

30 टिप्‍पणियां:

श्याम त्रिपाठी ने कहा…

रश्मि जी आपकी बात पढकर मुझे अपने मानता-पिता दोनों की याद आ गयी और मैं आपकी पीड़ा महसूस कर सकता हूँ
कि जनके कंधे पर बैठकर हम मिठाइयां खाते थे -पूजा पर बैठते थे और घर के कोने -कोनें में दिए जलाते -उनमें घी और तेल डालते थे | अब सब कुछ सूना -सूना लगता है | फिर भी हम साहस की सांस लेकर सबको दीपावली की शुभकामनाएं देते हैं | बहुत हृदय स्पर्शी भाव ........श्याम हिन्दी चेतना

Anita Manda ने कहा…

मार्मिक लिखा है!

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

जीवन चक्र है। जो आया है उसे जाना भी है। मां बाप चले जाते हैं शरीर नहीं रहता है पर आसपास उनके अहसास जीवित रहते हैं।

Sudershan Ratnakar ने कहा…

मर्मस्पर्शी । जो इस स्थिति से गुज़र चुके हैं वे इसकी मार्मिकता को और गहराई से महसूस कर सकते हैं।बहुत सुंदर

बेनामी ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय।
आपने बिल्कुल सही कहा । सब सूना है मगर भी साहस नहीं खोना है ।
दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएँ आपको।
सादर प्रणाम स्वीकारें।

रश्मि विभा त्रिपाठी 'रिशू'

बेनामी ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया।
दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएँ आपको।
सादर।

Digvijay Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 15 नवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

dr.surangma yadav ने कहा…

बहुत मार्मिक!

प्रीति अग्रवाल ने कहा…

भावपूर्ण रचना। बधाई रश्मि जी!

सधु चन्द्र ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
सधु चन्द्र ने कहा…

निश्चय ही माता-पिता की
रिक्ततता जीवन में कोई नहीं भर सकता
मन व्याकुल होता है
झटपटाता है पर विवश हो लौट आता है उस शून्य आकाश से,जहाँ कुछ को रखा है हमने...
स्पर्शी रचना

शुभा ने कहा…

बहुत हृदयस्पर्शी सृजन ।

आलोक सिन्हा ने कहा…

बहुत मार्मिक ह्रदय स्पर्शी |

Dr. Purva Sharma ने कहा…

सच में बहुत हृदय स्पर्शी एवं भावुक करने वाला हाइबन
बहुत बहुत बधाइयाँ रश्मि जी

बेनामी ने कहा…

जी सच कहा आपने आदरणीय बेशक़ संसार के पार चले जायें मगर माँ पिता का अहसास हमेशा जीवित रहता है।
बहुत बहुत धन्यवाद।
सादर।

बेनामी ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया।
आपकी टिप्पणी सदैव ही मुझे नवीन ऊर्जा से भर जाती है।
सादर।

बेनामी ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय।
मेरी रचना को "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर साझा करने के लिए।
सादर।

बेनामी ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया।
सादर।

बेनामी ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया।
सादर।

बेनामी ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय।
सादर।

बेनामी ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया।
सादर।

बेनामी ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय।
सादर।

बेनामी ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया।
सादर।

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

बेहद मर्मस्पर्शी. अपनों की याद ऐसे वक़्त में और ज़्यादा आती है. शुभकामनाएँ.

Jyotsana pradeep ने कहा…

आँखें नम हो गईं आपकी रचना पढ़कर रश्मिजी,बेहद भावपूर्ण!
आपको हृदय तल से शुभकामनाएँ!

बेनामी ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया।
सादर।

बेनामी ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया।
सादर।

बेनामी ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

ऐसा ही होता है, आख़िरकार मन को बहलाना ही पड़ता है! बहुत कठिन होता है!
मार्मिक प्रस्तुति!

~सादर
अनिता ललित

बेनामी ने कहा…


जी सच कहा आपने आदरणीया।
मन को बहलाने के सिवा कोई अन्य रास्ता सूझता ही नहीं।
बहुत बहुत धन्यवाद।

सादर।
रश्मि विभा त्रिपाठी 'रिशू'