रविवार, 21 मार्च 2021

961-माहिया

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माहिया

रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु' ( स्वर : ज्योत्स्ना प्रदीप)

1

क्यों इतनी दूर गए?

मिलने की आशा

कर चकनाचूर गए ।

2

पाहन का दौर चला,

पूजा था जिसको,

उसने हर बार छला।

3

हमको हर बार मिली,

घर के आँगन में

ऊँची दीवार मिली ।

4

चिट्ठी जब खोली थी;

आखर की  चुप्पी

रह-रहकर बोली थी।

5

दिन-रात हमें काटा

दर्द हमें देकर

सुख गैरों को बाँटा ।

6

तन-मन सब दे डाला

बदले में पाया

इक ज़हर-भरा प्याला ।

7

हर रोज़ दग़ा देंगे

रिश्ते आँधी हैं

बस आग लगा देंगे ।

8

हम यूँ भी कर लेंगे

दोष तुम्हारे भी

अपने सिर धर लेंगे ।

9

तुम चन्दा अम्बर के

मैं केवल तारा

चाहूँगा जी भरके।

10

तुझको उजियार मिले

बदले में मुझको

चाहे अँधियार मिले।

11

तुम सागर हो मेरे

बूँद  तुम्हारी हूँ

तुझसे ही लूँ फेरे।

12

हम बहुत अकेले हैं

क़िस्मत के हाथों

उजड़े  ये मेले हैं।

13

तुमको मन आँगन दूँ

छोड़ नहीं जाना

निर्मल तन दर्पन दूँ।

14

अब तो तुम आ जाओ

साँसें हैं व्याकुल

जीवन बन छा जाओ।

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2 टिप्‍पणियां:

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

बहुत अच्छा लगा मधुर स्वर में इन उत्कृष्ट माहिया को सुनना...| मेरी हार्दिक बधाई आप दोनों को

Jyotsana pradeep ने कहा…

हर माहिया दर्द की एक कहानी लिए हुए है।
उत्कृष्ट एवँ लाजवाब माहिया। इन्हें गाने से अनूठा आनन्द मिला।