शनिवार, 9 अक्तूबर 2021

990-मन एकाकी

 रश्मि विभा त्रिपाठी 

1


तुम तक ही

मेरी मन- परिधि 

कौन- सी विधि

मैं तुमको बिसारूँ

ये मन- प्राण वारूँ ! 

2

मन एकाकी 

बनकर बैसाखी 

तुम्हारा प्रेम 

सहारा दे सहर्ष 

सुनिश्चित उत्कर्ष !

3

वरदहस्त

धरा जो मेरे शीश

प्रफुल्ल प्राण 

पा स्नेहिल आशीष

तुम्हीं हो मेरे ईश !

4

मेरी आँखों से 

बहे जो पीड़ा-जल

मीलों दूर भी

हे प्रिय उसी पल

तुम होते विकल ।

5

तुम्हारा प्रेम

खरी दुपहरी में

सौम्य, शीतल

प्रिय! प्रेमिल छाँव 

ले आए मन- गाँव ।

6

शब्द- सुमन

बरसाते सुगंध

श्रुति- दुआरे 

पूर्णत: सुरभित

रोम- रोम हर्षित ।

7

श्रुति- दुआर

गुँजित- किलकार

हर्षित प्राण

आकण्ठ- मग्न- शीश

पा सौम्य- सुभाशीष ।

8

उर दुआर

सुन प्रिय पुकार

प्रफुल्लित हो

बिछा आसन- पाटी

स्वागत- गीत गाती ।

9

सारी थकन

मेरी हथेली धरो

विश्राम करो

अंक- आसन- पाटी 

प्रिय मैं लोरी गाती ।



9 टिप्‍पणियां:

Krishna ने कहा…

बहुत सुंदर भावपूर्ण ताँका... हार्दिक बधाई विभा जी।

Sudershan Ratnakar ने कहा…

ख़ूबसूरत ताँका के लिए हार्दिक बधाई रश्मि विभा जी।

बेनामी ने कहा…

मुझे सृजन हेतु नवऊर्जा देती आपकी प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार आदरणीया ।

सादर 🙏🏻

बेनामी ने कहा…

मुझे प्रोत्साहन देती आपकी सुन्दर प्रतिक्रया का हृदय तल से आभार आदरणीया।

सादर 🙏🏻

बेनामी ने कहा…

हार्दिक आभार आदरणीया।

सादर

Sushila Sheel Rana ने कहा…

तुकांत शब्दों के प्रयोग से काव्य में प्रवाह और सौंदर्य की अभिवृद्धि हुई है। सुंदर सृजन। बधाई

Ramesh Kumar Soni ने कहा…

अच्छे ताँका- बधाई।
उत्कृष्ट शब्दों के चयन ने ताँका को जीवंत कर दिया है।

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

बहुत सुंदर ताँका! हार्दिक बधाई विभा रश्मि जी!

~सादर
अनिता ललित

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

बहुत सुन्दर तांका हैं सभी...बहुत बधाई |