सोमवार, 18 अप्रैल 2022

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 भीकम सिंह 

1

दूब रेशमी 

खेतों के सिरहाने 

बैठी नहाने 

पगडंडी की धूल

लगी गुनगुनाने 

2

बिरवे संग

गाँव- गाँव में जागी

सोई मुस्कानें

खेतों की तरुणाई 

ज्यों लगी अँगडाने ।

3

गली में  पड़े 

फब्तियों के पत्थर

तंत्र बेजान 

होके लहूलुहान 

पड़ी रही उड़ान ।

4

रात चाँदनी 

प्रेम की मुंडेर को

लगी लाँघने 

कोना - कोना उठके

जैसे लगा ताँकने 

20 टिप्‍पणियां:

नीलाम्बरा.com ने कहा…

बहुत सुंदर लेखन। हार्दिक बधाई शुभकामनाएं।

बेनामी ने कहा…

बहुत ही सुंदर ताँका।

हार्दिक बधाई आदरणीय 🌷💐


नंदा पाण्डेय ने कहा…
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नंदा पाण्डेय ने कहा…

बहुत उम्दा लेखन की बधाई सर को💐🙏

Sonneteer Anima Das ने कहा…

अति उत्कृष्ट सृजन... और भावपूर्ण भी 🙏🌹

शिवजी श्रीवास्तव ने कहा…

समस्त ताँका बेहतरीन, हार्दिक बधाई।

प्रीति अग्रवाल ने कहा…

वाह! अति सुंदर, विशेषतः दूब रेशमी...
हार्दिक बधाई आदरणीय।

Krishna ने कहा…

बहुत उम्दा सृजन...हार्दिक बधाई।

Ramesh Kumar Soni ने कहा…

बेहतरीन ताँका-बधाई।

Sudershan Ratnakar ने कहा…

एक से बढ़कर एक सभी ताँका बहुत सुंदर है। हार्दिक बधाई

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

बहुत मनमोहक ताँका। हार्दिक बधाई।

Dr. Purva Sharma ने कहा…

सभी सुंदर ... विशेषतः- रात चाँदनी ...
बहुत ही मनभावन ताँका
हार्दिक बधाई

dr.surangma yadav ने कहा…

बहुत सुंदर।

Jyoti Dehliwal ने कहा…

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।

Anita Manda ने कहा…

मन भावन पोस्ट।

भीकम सिंह ने कहा…

त्रिवेणी में स्थान देने के लिए सम्पादक द्वय का हार्दिक धन्यवाद और उत्साहवर्धक टिप्पणी करने के लिए आप सभी का हार्दिक आभार ।

Onkar ने कहा…

बहुत सुंदर

Vibha Rashmi ने कहा…
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Vibha Rashmi ने कहा…

सुन्दर बिम्ब उकेरते , उपमानों - उपमेय से सजे ताँका । सभी बेहतरीन । बधाई भीकम सिंह जी ।

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

बहुत सजीले ताँका...मेरी बधाई