मंगलवार, 3 मई 2022

1031- रश्मि विभा त्रिपाठी की रचनाएँ

 रश्मि विभा त्रिपाठी की रचनाएँ

1- सुख के बीज (चोका)

 

मेरे दुख को


देख दुखी हो जाते

जग- जंगल

जरा चैन ना पाते

दिन औ रात

दोनों हाथ उठाते

दुआ में बस

पिघलाते, गलाते

पीड़ा के हिम

गालों पर तैराते

हास के कण

जो तुमको लुभाते

तुम कहीं से

ढ़ूँढके ले ही लाते

सुख के बीज

घर में छिटकाते

फुलवारी- सा

आँगन महकाते

प्रिये! धन्य हो

जोड़ नेह के नाते

जीवन को जिलाते।

 -0-

2- अग्नि- परीक्षा(सेदोका)

1

तुम सँभालो

साँसों का ये सितार

खण्डित तार- तार

कान्हा मैं चाहूँ

वंशी की रसधार

डूबूँ, उतरूँ पार!!!

2

घट- घट के

अधिवासी केशव

सुमिरूँ, तरूँ भव

तुम्हीं से पाया

जीवन का उद्भव

मैं थी केवल शव!!

3

औरों से मिला

नाम मुझे पगली


निश्चलता की गली

श्रीकृष्ण की ही

निष्ठा पर मैं चली

नाग- नथैया, बली।

4

भाव-भक्ति का

घिस रहा चन्दन

मन मेरा मगन

श्रद्धा का ध्येय

श्री धाम वृंदावन

साँवरे का दर्शन।

5

मेरा जीवन

तुम्हारे ही हवाले

तुम ही रखवाले

उन्मुक्त करो

तोड़ो पिंजर-ताले

आओ मुरली वाले।

6

घुमड़ रहे

दुख- बादल काले

मन को तू बचा ले

बहा दे सुर

अधरों से निराले

ओ मुरलिया वाले।

7

अधर्म का ही

बढ़ता अत्याचार

मचा है हाहाकार

हे कृष्ण! करो

निरीह का उद्धार

लो पुन: अवतार।

8

भरी मटकी

नन्ही- नर्म हथेली

छींके से जा धकेली

बाल गोपाल

तुम्हारी अटखेली

अनबूझी पहेली।

9

चले आते हैं

वे जिसके भी पास

बँधा देते हैं आस

सदा स्वच्छंद

मन रचाए रास

श्रीकृष्ण का जो दास।

10

ईश सँभालो

तुम सारा प्रबन्ध

रखो मुझे निर्बंध

लिखती रहूँ

जीवन का निबंध

होके पूर्ण स्वच्छंद।

11

कभी हो इति

विप्लव के गान की

दुख, अपमान की

अग्नि- परीक्षा

अरण्य में प्राण की

राम!!! रोए जानकी।

-0-

3- मन मेरा अघाया(ताँका)

1

तुम्हीं से दृढ़

जीवन का विश्वास

और मन में

खिले प्रेम- पलाश

प्रफुल्ल श्वास- श्वास।

2

पावन प्रेम

अँजुरी मेरी भरा

न्यारा सौरभ

जीवन में बिखरा

खिला मन- मोगरा।

3

बियाबान में

प्रेम की घटा घिरी

तो खिल उठी

मन की मौलसिरी

श्वासों में खुश्बू तिरी।

4

स्नेह का सोम

तुमसे जो पाया

तृप्ति- उत्सव

जीवन ने मनाया

मन मेरा अघाया।

5

दुख भंजन

तुम्हारी प्रार्थनाएँ 

सदा बचाएँ

कभी बाधा-बलाएँ

मुझे छू भी न पाएँ।

6

तुम जो आए 

तो सूखे-मुरझाए

प्राण औ मन

फूले नहीं समाए

हँसे, खिलखिलाए।

7

संसार साधे

मेरी पीठ पे बाण

हथेली पर

तुमने धर प्राण

मुझे दिया है त्राण।

8

नेह- निधि ले

प्रिय घर जो आए

प्रसन्नता का

मन पर्व मनाए

मंगलचार गाए।

9

मेरे लिए कीं

तुमने प्रार्थनाएँ

मुमूर्षा में भी

मेरे प्राण जी जाएँ

मोद में हैं आशाएँ।

10

जुड़ा तुमसे

जबसे मेरा नाता

आनंदगान

मन झूमता-गाता

मुझे दुख छू न पाता।

11

दुआ के मंत्र

नित्य रहा उच्चार

पग-पग पे

मेरा तरनतार

बना तुम्हारा प्यार।

-0-

11 टिप्‍पणियां:

नीलाम्बरा.com ने कहा…

अत्यंत सुंदर लिखा प्रिय रश्मि , आत्मिक बधाई तथा शुभकामनाएँ।

भीकम सिंह ने कहा…

बहुत ही सुन्दर, हार्दिक शुभकामनाएँ ।

Sonneteer Anima Das ने कहा…

वाहह वाह्ह्ह... यह लिखनी स्वयं ही माँ शारदा है.... 🙏🌹 अत्यंत सुंदर उत्कृष्ट, भावों से पूर्ण... बिभोरता से सिक्त... प्रत्येक रचना... वाह्ह्ह रश्मि जी 🙏🌹

बेनामी ने कहा…

उत्कृष्ट सृजन के लिए हार्दिक बधाई।

dr.surangma yadav ने कहा…

वाह !बहुत सुन्दर रचनाएँ रश्मि जी।हार्दिक बधाई।

बेनामी ने कहा…

रचना प्रकाशन के लिए आदरणीय सम्पादक जी का हार्दिक आभार।

अपनी टिप्पणी से मुझे नवल ऊर्जा प्रदान करने हेतु आप सभी आत्मीय जन की हृदय तल से आभारी हूँ।

सादर

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुन्दर सृजन

Krishna ने कहा…

उत्कृष्ट सृजन...हार्दिक बधाई।

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

बहुत सुन्दर रचनाएँ, बधाई रश्मि जी.

प्रीति अग्रवाल ने कहा…

बहुत सुंदर रचनाएँ, बधाई रश्मि जी।

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

इन प्यारी रचनाओं के लिए बहुत बधाई प्रिय रश्मि