गुरुवार, 2 जून 2022

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भीकम सिंह 

1

हँसते हुए 

गाता गुलमोहर


धूप के गीत
 

हवा रूठके बैठी 

जन्म- जन्मों की रीत ।

2

गुलमोहर 

गर्मी की भरपाई 

हवा ज्यों क्रेता 

धूप के बाजार में 

हँसी क्रय को आई ।

3

लाल फूलों का 

ऐसा लगा अंबार

छुट्टी में जैसे 

गुलमोहर बैठा 

जीर्ण वस्त्र उतार 

4

पकड़े हुए 

धूप की टहनियाँ 

घास के लिए 

गुलमोहर बाँधें

फूलों की पोटलियाँ 

5

फूल पहनें 

सावधानी में खड़े 

गुलमोहर 

देखके धूप खिले 

हवा की भौंह चढ़े ।

 -0-

 2- हरमुख 

भीकम सिंह 

       उस समय सुबह के सात बजे होंगेमैं नंदकुल नदी के बीच एक पत्थर पर बैठा था । मेरे दाई ओर पाँच सौ गज के फासले पर हमारा कैंप था, ठीक सामने लगभग एक किमी . की दूरी पर नंदकुल झील थी , जिसमें बर्फ के फाहे तैर रहे थे । इस झील  को देखते हुए मुझे इसके जनक ( हरमुख पर्वत) की



धार्मिक कहानी की प्रतीति याद आती है कि एक गुज्जर अपनी बकरी को तलाश कर रहा था, तो तलाश करते समय उसने हरमुख पर्वत पर एक दंपती को गाय दूहते देखा,जो एक मानव खोपड़ी में दूध

पी रहे थे
, दंपती ने उस गुज्जर को दूध दिया, जिसे उसने पीने से मना कर दिया, तो पुरुष ने थोड़ा सा दूध गुज्जर के माथे पर मल दिया । यह बात गुज्जर ने एक साधु को बताई और उस स्थान की ओर संकेत किया, तो साधु बड़ा प्रसन्न हुआ और गुज्जर का माथा चाटने को बढ़ा। यह कहानी मुझे ट्रैक के गाइड रशीद ने गंगाबल झील पर सुनाई, मैंने तभी इसे दिमाग से निकाल दिया और कहानी ही समझा ।

      इसके बाद रशीद ने मुझे बकरी के दूध की छाछ पीने का ऑफर दिया, जो मैंने यह कहते हुए स्वीकार कर लिया कि उस हरमुख पर्वत वाली गाय की तो नहीं , सुनते ही रशीद हँसी से दोहरा हो गया ।

     आज नंदकुल पर मैने  फिर रशीद से छाछ पीने की इच्छा जताई, तो उसने कहा कि गाँव बहुत दूर है, छाछ लाना सम्भव नहींमैने कहा -फिर उस दिन कैसे लाथे ।

   रशीद बोला- किस दिन ? और असहमति के भाव चेहरे पर बिखेर लिये । मैंने किसी से इसका जिक्र तक नहीं कियासंजीव वर्मा से कैंप में जाकर पूछा कि रशीद ने जब मुझे छाछ दी थी, तब आपने देखा था ? तो संजीव वर्मा ने सोच विचारकर हाँ कहासंजीव वर्मा की सोच विचार कर हाँ करने की स्मृति ने मुझे परेशान-सा कर दिया  मुझे लगा मैने इसकी कल्पना की थी 

                           हरमुख है 

                     कश्मीर का कैलाश

                           भरे उल्लास ।

-0[-सभी चित्र डॉ भीकम सिंह]


9 टिप्‍पणियां:

Anita Manda ने कहा…

सुंदर सृजन।
कभी कभी जीया हुआ जीवन और कल्पित जीवन सच में मिश्रित हो जाता है।

भीकम सिंह ने कहा…

अनीता मंडा जी ! आपके विचार से मैं शत प्रतिशत सहमत हूँ, आपका हार्दिक आभार ।

dr.surangma yadav ने कहा…

गुलमोहर पर बहुत सुन्दर ताँका । विस्मित करता हाइबन।बधाई सर!

बेनामी ने कहा…

कभी-कभी हमारी सोच जीवंत हो उठता है। गुलमोहर का सजीव चित्रण। सुंदर रचनाएँ। बधाई। सुदर्शन रत्नाकर

बेनामी ने कहा…

उठती है

नीलाम्बरा.com ने कहा…

बहुत अच्छा लेखन।

Krishna ने कहा…

बहुत सुन्दर ताँका और हाइबन...बहुत बधाई।

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

सभी ताँका बहुत सुन्दर। हाइबन बहुत अद्भुत लगा। कोई भी कल्पना यथार्थ-सी लगे तो ऐसा ही होता है। हार्दिक बधाई।

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

सभी ताँका गुलमोहर का बहुत ख़ूबसूरत चित्रण करते हुए!
हाइबन भी रोचक लगा!

हार्दिक बधाई आदरणीय भीकम जी!

~सादर
अनिता ललित