शुक्रवार, 28 अक्तूबर 2022

1084

 

रश्मि विभा त्रिपाठी

1

ऊँचा तकिया

बिछी पीली चादर

रवि जो लौटा घर,

गिरि ने दिया

बाँहें फैलाकरके

ख़ूब प्यार, आदर। 

2

अनोखा खेल

कभी काँधों पे बैठे

कभी पीठ के पीछे

शिखर देखे

सूरज खोले, मूँदे

रोशनी के दरीचे। 

3


हिम ओढ़के

सबकुछ छोड़के

की शैल ने साधना

है एकमात्र

उत्तरीय काँधे पे

शुद्ध सोने से बना। 

 -0- [ फोटो; कमला निखुर्पा के सौजन्य से]

9 टिप्‍पणियां:

शिवजी श्रीवास्तव ने कहा…

वाह,सभी सेदोका बहुत सुंदर,चित्र के मर्म को नवीन उपमाएँ देते हुए रचे गए सेदोका के लिए रश्मि जी को बधाई।

डॉ. पूर्वा शर्मा ने कहा…

एक से बढ़ाकर एक सुंदर सेदोका
बधाई रश्मि जी

बेनामी ने कहा…

सेदोका प्रकाशन के लिए आदरणीय सम्पादक द्वय का हार्दिक आभार।

आदरणीय शिव जी श्रीवास्तव जी एवं आदरणीया पूर्वा जी की आभारी हूँ।

सादर

बेनामी ने कहा…

एक से बढ़कर एक सुंदर सेदोका। बधाई

बेनामी ने कहा…

सुदर्शन रत्नाकर

Vibha Rashmi ने कहा…

प्रकृति के सभी सेदोका बहुत खूबसूरत ।बधाई रश्मि विभा जी ।
विभा रश्मि

प्रीति अग्रवाल ने कहा…

बहुत बढ़िया सेदोका रचे हैं रश्मि जी!

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

बहुत प्यारे सेदोका! चित्र भी बहुत सुंदर!

~अनिता ललित

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

वाह, बहुत सुन्दर सेदोका हैं, हार्दिक बधाई