बुधवार, 9 नवंबर 2022

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 भीकम सिंह 

 

गाँव  -18

 

गाँव ढूँढता 

गली के नुक्कड़ पे

खुद आपको 

होता नशे में सारा 

जब रात को 

हर एक का होता 

एक ही रोना 

बगैर नींद सोना 

बीच-बीच में 

पलकों को भिगोना

भोर में खेत खोना 

 

गाँव  - 19

 

गाँव रात का

बिस्तर बाँधकर

तह कर दे

दिन के उजालों का

क्या है भरोसा 

कब रात कर दे

पूरा पा पके 

दिन उस ख्वाब को 

कहकर दे 

काँटों भरे हैं खेत

दुःख सहकर दें ।

 

गाँव  - 20

 

ईंट गारे का

गाँव बना बैठा है 

खुद को ताज

मानकर बैठा है 

सब कुछ तो 

मंडी ने चुरा लिया 

खुद मानके 

थानेदार बैठा है 

राजनीति में 

मकई के दाने- सा 

भुट्टा मान बैठा है 

 

गाँव  - 21

 

 

गर्मी या सर्दी 

खेतों की अँगड़ाई 

खलिहानों में 

पड़ जाती दिखाई

दिल खोलके 

जैसे हँसे तन्हाई 

सूदखोर त्यों 

बोने आता रुस्वाई

देख न पाती 

किसान की बिनाई

खो जाती पाई -पाई ।

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5 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

बहुत बहुत बहुत ही सुंदर, अप्रतिम चोका।
हार्दिक बधाई आदरणीय।

सादर

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

सभी चोका बहुत बढ़िया!

~सादर
अनिता ललित

बेनामी ने कहा…

बधाई आदरणीय | सुन्दर चौका |

प्रीति अग्रवाल ने कहा…

आपकी रचनाएँ अद्भुत कारीगरी लगती हैं आदरणीय। धन्यवाद!

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

अपनी मिट्टी से जुड़े सभी बेहतरीन चोका के लिए बहुत बधाई