शुक्रवार, 25 नवंबर 2022

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 1-सूने हुए पहाड़(चोका )

सुदर्शन रत्नाकर

 

 बोलते नहीं

चुपचाप हैं खड़े

आदि सृष्टि से

अनथक है यात्रा

भू समेटती

धरोहर अपनी

प्राण तुम्हारे

अनगिनत पेड़

बहें झरने

मधुर गीत गाते

गोद है भरी

हरीतिमा निराली

उड़ते पक्षी

विचरते हैं पशु

स्वार्थ में लिप्त

समझे न मानव

काटे जंगल

बदला सब कुछ

टूटें पत्थर

 

आसमान थे छूते

रूठी प्रकृति

ले रही प्रतिकार

सूने हुए पहाड़।

-0-ई-29,नेहरू ग्राउंड,फ़रीदाबाद 121001

-0-

तेरी बातों का (चोका)

रश्मि विभा त्रिपाठी

1


तेरी बातों का

चाँदनी- सा शीतल

ये अहसास

होने लगूँ विकल

तो उसी पल

दबे पाँव आकर

हुड़ककर

हारे- थके मन से

लिपटता है

और दो- चार जो बूँदें

छिटकता है

अमृत के घट से

 अनुराग से

अमावस की रात

अकबकाई

कि किसने सजाई

पलकों पर

झिलमिल जुन्हाई

सच कह दूँ?

तेरा साथ जो मिला

तो नहीं गिला

अपनी किस्मत से

ईश्वर हआ

बड़ा मेहरबान

अब मुझपे

मिला है वरदान

तेरे रूप में

तू साँझ बेला में

नित प्रति ही

मंदिर  में जलता

एक दीप है

मैं जिसका शलभ,

मेरी भोर का

या फिर तू सूरज

उगता हुआ

मैं जिसका हूँ नभ

बड़भागी हैं

तुझे जबसे देखा

सारे के सारे

उम्मीद के सितारे

जगमगाए

तू कुछ कहता है

तेरे होठों से

उजाले का झरना

पूरे वेग से

बहता रहता है

मेरी आँखों में

ओ मेरे मनमीत

चाँद चमकता है

-0-

आलिंगन में(सेदोका)

रश्मि विभा त्रिपाठी

1

आलिंगन में,

कसकरके मींजा,

अचक अवसाद,

और तुमने

ज़िन्दगी की जीभ पे

रख दिया है स्वाद।

2

लिखे जाएँगे

प्रेमियों के अगर

इतिहास में किस्से

अव्वल तुम्हीं

लेते मेरे दुख जो

तुम अपने हिस्से!!

3

तुमको पाके

दौड़ती दिल में जो

ख़ुशी की रवानी है

तुम्हारा प्यार

गोमुख से निकली

गंगा का वो पानी है।

4

मेरे माथे पे

महकता, खिलता

है जो ख़ुश्बू का बोसा

मिला इसमें

मुकद्दस प्यार का

एक पुख़्ता भरोसा।

5

जमाने को तो

लगेगा ये गुनाह

या कोई शरारत!

एक बोसे से

पल में पी गया जो 

वो मेरी हरारत।

6

मेरे मन से

तेरे मन की जुड़ी

इस तरह डोरी!

गोदी में लेटे

नन्हे- मुन्ने के लिए

ज्यों होती माँ की लोरी।

7

गले लगाके

पल में पिघलाया

ताप सारा का सारा,

ओ प्यार मेरे!

तरनतारन हो

तुम गंगा की धारा!!

8

दुआ के रंग

दिन पर उड़ेले

हर रात दीवाली!

बदल डाली

तूने तो ज़िन्दगी की

शक़्ल- सूरत काली।

9

मुझे न लगे

कोई भी दुख, रोग

नाचूँ मोर बनके

दुआ में पगे

तूने फेरे मनके

बना है शुभ योग।

10

कड़कड़ाते

जाड़े की तुम धूप

गुनगुनी, गुलाबी

मुरझाया जो

मौसम की मार से

खिला ये मेरा रूप।

11

अपने सुख

मुझे सौंपके तूने

मेरे दुख को पाला

इस जग में

किसी ने भी किसी को

ऐसे नहीं सम्भाला।

7 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

प्रेम की अद्भुत भावनाओं से ओतप्रोत सुंदर मनमोहक रचनाओं के लिए रश्मि जी को बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ निरन्तर ऐसा ही सुंदर लिखती रहें। सुदर्शन रत्नाकर

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

बहुत सुंदर एवं भावपूर्ण चोका आदरणीया सुदर्शन दीदी जी!

प्रेम भाव से ओतप्रोत चोका बहुत ही सुंदर तथा सेदोका तो लाजवाब प्रिय रश्मि!

~सादर/सस्नेह
अनिता ललित

बेनामी ने कहा…

बहुत ही सुंदर, भावपूर्ण चोका।

आदरणीया रत्नाकर दीदी को हार्दिक बधाई 💐🌹

मुझे त्रिवेणी में स्थान देने के लिए आदरणीय सम्पादक द्वय का हार्दिक आभार।

आदरणीया रत्नाकर दीदी एवं आदरणीया अनिता दीदी की टिप्पणी की हृदय तल से आभारी हूँ।

सादर

Sonneteer Anima Das ने कहा…

अत्यंत सुंदर सार्थक मनभावन रचनाएँ... वाहह आप दोनों को अनंत बधाई 🙏🌹🙏🙏🌹🌹🌹🌹🌹🌹💐💐💐💐

Krishna ने कहा…

अति सुंदर मनमोहक रचनाएँ...आदरणीया सुदर्शन दी, रश्मि जी आप दोनों को हार्दिक बधाई।

प्रीति अग्रवाल ने कहा…

आह! कितनी सुंदर रचनाएँ! सुदर्शन दी और रश्मि जी को धन्यवाद!!

प्रियंका गुप्ता ने कहा…

आप दोनों की ही रचनाएँ बहुत मनभावन हैं, ढेरों बधाई