रविवार, 5 फ़रवरी 2023

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1-बूँद का चक्र 

सविता अग्रवाल सवि कैनेडा 

 

बर्फ़ की बूँद

चाँदी में नहाकर

बैठी –मुँमुंडेर 

सेक सूर्य की गर्मी

बूँद शर्माई

पानी- पानी होकर

धरा पे आई

मिल सखियों संग

नदी से मिली

भाप- सी उड़कर

नभ को चली

बादलों को ढूँढती 

प्रेमिका बनी

नवरंगों को बसा   

नभ चूमती

सौदामिनी से भिड़ी

हवा के संग

इत उत बिखरी

उड़ती फिरी

बर्फ़ीली रुत आई

बूँद ही बनी

वृक्षों पे गिरकर

शाखओं से लिपटी |

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2-सुदर्शन रत्नाकर

 

1-सर्दी की धूप

 

सर्दी की धूप

छुई-मुई सी बैठी

मुँडेर पर

उतरी धीरे -धीरे

लजाती हुई

छुए धरा के पाँव

थपथपाया

दुलार से तपाया

ढकी है छाँव

धूप ने आँचल से

सबके साथ

लगाई गपशप

थक गई वो

आँचल को समेटा

साँझ बेला में

लाँघ के दहलीज़

 छुपी जाकर

पेड़ की फुनगी पे

लौटेगी कल फिर

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2 आया वसंत

 

आया वसंत

कूक उठी कोयल

बही बयार

महका आम्र-वन

फैली सुगंध

चहक उठे पक्षी

प्रेम में मग्न

धरा का कण-कण

बिछे क़ालीन

नर्म -नर्म घास के

नव पल्लव

लाए नव जीवन

खिली सरसों

पहन पीले वस्त्र

हँसे कुसुम

दिया प्रेम -संदेश

रंगों का मेला

मादकता है  छाई

गूँजे भँवरे

तितलियों का रेला

सजा सूरज

देने को गर्माहट

देखो तो ज़रा

निर्मल आसमान

नहाया ज्यों जल में।

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सुदर्शन रत्नाकर,-29, नेहरू ग्राउंड,फ़रीदाबाद 121001

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3-भीकम सिंह 

 

 

गाँव  - 41

 

खेत जमीनी 

बारिशें आसमानी 

फसलें उगें 

ज्यों चेहरा नूरानी 

देख -देखके 

मन होता बेमानी 

परिंदे करें 

ज्यों सत्संग रूहानी 

गाँवों में होता 

जब भी ये मौसम 

आती याद पुरानी 

 

गाँव- 42

 

अब के चली 

खेतों में जो हवाएँ 

दिल्ली को लेनी 

पड़ गई दवाएँ

खौफ-सा छाया 

शहर के ऊपर

माँगनी पड़ी

ईश्वर से दुआएँ 

हैरत में हैं 

पूर्वजों की ध्वजाएँ 

वेदना लहराएँ 

 

गाँव- 43

 

खेत सहते 

नीलगायों की चोट

और क्रूरता 

धर्म तो व्याख्याओं का

जाल पूरता 

लोकतंत्र का व्यंग्य 

मौन घूरता 

ग्रामीणों के  हिस्से में 

दुःख ही आता 

वो सहते रहते 

मानकर वीरता 

 

गाँव  - 44

 

मिट्टी में घुला 

रसायन देखके 

डरे  हैं खेत 

जाने किस सोच में 

पड़े हैं खेत 

फसल चक्र से भी 

बचने लगे 

थोड़ा-सा चलने पे

थकने लगे 

कुछ दिनों से खेत 

उड़ने लगी रेत 

 

 

गाँव- 45

 

वर्षा में धुला 

पवन चल रहा 

खेत का अंग 

शाइरी कर रहा 

लिख रहा ज्यों 

सतर खींचकर 

हल से अभी 

मिसरा कर रहा 

जोते हैं कोने 

ज्यों काफ़िया से, उन्हें 

मतला कर रहा 

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6 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

स्नेही हरदीप जी और आदरणीय भाई कामबोज जी मेरे चोका को त्रिवेणी में स्थान देने के लिए हार्दिक आभार। सुदर्शन जीं और भीकम जीं के अति सुंदर चोक़ा पढ़कर प्रसन्नता मिली सभी को अनेक शुभकामनाएँ और बधाई।सविता अग्रवाल “सवि” केनेडा

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

बहुत ख़ूबसूरत चित्र उकेरते सभी चोका !

~सादर
अनिता ललित

Krishna ने कहा…

एक से बढ़कर एक सुंदर चोका... सविता जी, सुदर्शन दीदी एवं भीकम सिंह जी को हार्दिक बधाई।

प्रीति अग्रवाल ने कहा…

वाह! क्या रंग जमाया तीनों वरिष्ठ रचनाकारों ने! बहुत आनन्द आया, आप सभी का दधन्यवाद!

बेनामी ने कहा…

भीकम सिंह जी, सविता जी बहुत सुंदर चोका के लिए हार्दिक बधाई। सुदर्शन रत्नाकर

बेनामी ने कहा…

सभी चोका खूबसूरत प्रकृति को साकार करते । हार्दिक बधाई सुदर्शन रत्नाकर जी , भीकम सिंह जी , सविता जी आपको ।
विभा रश्मि