गुरुवार, 24 नवंबर 2011

ढूँढती समाधान



डॉ०रमा  द्विवेदी

1
अजब भाषा
बाँच  पाए कोई
झीनी चुनरी
देख सके न आँख
रहें  प्रेम में  खोई
2
पानी-ही पानी
प्यासा समंदर क्यों
ढूँढ़े नदी को
नदी ढूँढ़ती उसे
अजीब रिश्ता यह ?
3
चुप्पी जो खिंची
फ़ासला बढ़ गया
बेवज़ह ही
रिश्ते को डस गया
ग्रहण लग  गया 
4
नग्न शज़र
रोता है  जार-जार
तलाशता है
हरित परिधान
कब होगा विहान ?
5
फिजाएँ गाएँ
हवा गुनगुनाए
संध्या की बेला
पर्वत हो अकेला
बंजारा गाता जाए ।
6
हरे-भरे जो
कल पीले होकर
मिट्टी में मिल
ठूँठ  रह  जाएँगे 
 नवांकुर आएँगे ।
7
बूँदें बरसीं
टप-टप टपकीं
अखियाँ रोईं
सुधियाँ उड़ आईं
हर्षित-मन भाईं 
8
रिश्ते में धोखा
ताउम्र वनवास
मन का त्रास
दिल की चाहत का
ढूँढती समाधान 
9
सात फेरे भी
रिश्ते बचा न पाएँ
व्यर्थ वचन-
प्रणय -अनुबंध
झूठे  सब सम्बन्ध 
10
खो गया सब
सभ्यता की दौड़ में
सुख-सुकून
दौड़ रहे फिर भी
चौधियाई आँखों से।
-0-
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6 टिप्‍पणियां:

  1. sabhi bahut sunder hai samudra aur nadi ki baat ne to man moh liya
    badhai
    rachana

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  2. सभी ताँका बहुत सुन्दर हैं...बहुत सारी परिस्थितियों पर प्रकाश डाला है,
    रमा दी को बधाई|

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  3. आप सबका स्नेह मिला ... बहुत-बहुत हार्दिक आभार | विशेष कर हिमांशु जी व हरदीप जी को दिल से शुक्रिया कहना चाहती हूँ जिनके प्रयास से ये ताँका यहाँ पर हैं पुन: आभारी हूँ इस आत्मीयता के लिए ....सादर...

    डा. रमा द्विवेदी

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