गुरुवार, 24 नवंबर 2011

जीवन है सागर


डॉoजेन्नी शबनम
1
तू हरजाई
की मुझसे ढिठाई
ओ मोरे कान्हा,
गोपियों संग रास
मुझे माना पराई
2
रास रचाया
सबको भरमाया
नन्हा मोहन,
देकर गीता-ज्ञान
किया जग-कल्याण
3
तेरी जोगन
तुझ में ही समाई
थी वो बावरी,
सह के सब पीर
बनी मीरा दीवानी
4
हूँ पुजारिन
नाथ सिर्फ तुम्हारी
क्यों बिसराया
सुध न ली हमारी
क्यों समझा पराया?
5
ओ रे विधाता
तू क्यों न समझता?
जग की पीर,
आस जब से टूटी
सब हुए अधीर
6
ग़र तू थामे
जो मेरी पतवार,
सागर हारे
भव -सागर पार
पहुँचूँ तेरे पास
7
हे मेरे नाथ
कुछ करो निदान
हो जाऊँ पार
जीवन है सागर
है न खेवनहार
8
तू साथ नहीं
डगर अँधियारा
अब मैं हारी,
तू है पालनहारा
फैला दे उजियारा
9
मैं हूँ अकेली
साथ देना ईश्वर
दुर्गम पथ,
अन्तहीन डगर
चल -चल के हारी
10
भाग्य विधाता !
तू निर्माता, जग का
पालनहारा,
हे ईश्वर सुन ले
इन भक्तों की व्यथा
-0-

6 टिप्‍पणियां:

  1. मैं हूँ अकेली
    साथ देना ईश्वर
    दुर्गम पथ,
    अन्तहीन डगर
    चल -चल के हारी ।
    बहुत सुन्दर और भावपूर्ण तांका! उम्दा प्रस्तुती!

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  2. ्वाह बेहतरीन भाव संजोये हैं।

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  3. भक्ति भाव लिए तांका बहुत सुन्दर हैं ...बधाई ....
    डा.रमा द्विवेदी

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  4. bhavon aur shbdon ka sunder samnyavay
    bahut bahut badhai
    rachana

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