शनिवार, 10 मार्च 2012

नारी की आभा


डॉ0 सरस्वती माथुर
1   
नारी की आभा
 सृष्टि के  सूर्य- सी है
 उजास लाती
 चिड़िया-सी उड़ती 
  पंख फैला नभ में 
2
 सुधि- सपने
नींद नदी में बहे
 बिना रुके ह़ी
अविराम बहते      
सागर जा ठहरे 
3
सुबह सूर्य
धूप भरी नदी में
तैरता रहा
साँझ जब वो रुका
सागर लाल हुआ ।
4

 ऋतु थी प्यासी
तितली- सी उड़ती

रस पीकर
कलियों से खेलती
रसपगी हो जाती ।
5
 घुँघरू बजा 
फागुनी हवाएँ भी
सुर मिलाके
चिड़िया संग डोली
हरी -भरी धरा पे ।
-0-

9 टिप्‍पणियां:

  1. सुबह सूर्य
    धूप भरी नदी में
    तैरता रहा
    साँझ जब वो रुका
    सागर लाल हुआ



    नारी की आभा
    सृष्टि केसूर्य- सी है
    उजास लाती
    चिड़िया-सी उड़ती
    पंख फैला नभ में।





    बहुत सुंदर तांका हैं .हार्दिक बधाई.

    सादर,

    अमिता कौंडल

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  2. सुबह सूर्य
    धूप भरी नदी में
    तैरता रहा
    साँझ जब वो रुका
    सागर लाल हुआ ।
    बहुत ही सुन्‍दर तॉंका प्रकृति की खूबसूरती ओर खूब बनाता ।
    डा सरस्‍वती जी को बधाई।

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  3. नारी की आभा
    सृष्टि केसूर्य- सी है
    उजास लाती
    चिड़िया-सी उड़ती
    पंख फैला नभ में।

    bahut sunder...sabhi taanka achche hain...badhai!

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  4. मुझे यह जानकर खुशी हो रही है कि हिन्दी हाइकु की तरह त्रिवेणी भी नई और सशक्त प्रतिभाओं को सामने ला रहा है । डॉ सरस्वती माथुर के रस से पगे ताँका पहली बार पढ़े , लेकिन ऐसा लगा कि किसी सिद्धहस्त रचनाकार का सर्जन है; नए का नहीं । प्रत्येक ताँका अपने मधुर सुर में मुखरित है हार्दिक बधाई , साथ ही सम्पादक द्वय को भी ।

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  5. सुबह सूर्य
    धूप भरी नदी में
    तैरता रहा
    साँझ जब वो रुका
    सागर लाल हुआ ।

    Bahut sundar prakrti varanan kiya hai is taankaa men...bahut2 badhai...

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  6. नारी की आभा
    सृष्टि के सूर्य- सी है
    उजास लाती
    चिड़िया-सी उड़ती
    पंख फैला नभ में ।
    nari ki abha aesi hi hai aapki soch ati uttam hai
    badhai
    rachana

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  7. बहुत सुन्दर और मोहक भाव...

    सुबह सूर्य
    धूप भरी नदी में
    तैरता रहा
    साँझ जब वो रुका
    सागर लाल हुआ ।

    शुभकामनाएँ.

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  8. तहे दिल से आभार !

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