मंगलवार, 10 अप्रैल 2012

दो चोका


1-मिलना तेरा-मेरा
कमला निखुर्पा

धरती मिली
गगन से जब भी
पुलक उठी
क्षितिज हरषाया ।

बदली मिली
पहाडों के गले से
बरस गई
सावन लहराया

ओ मेरे मीत !
मिलना तेरा -मेरा
मिले हैं जैसे
नदिया का किनारा .
मन क्यों घबराया ?
-0-





2-मैं पाषाण
कमला निखुर्पा

मोम -सा प्यार
जल उठा पल में
पिघल गया
धुआँते रहे तुम ।

बह गई वो
प्रेम की निशानियाँ
तुम कोमल
       आहत जब हुए  ।
मैं तो पाषाण
जमीं युगों -युगों से
न बदली थी,
न बदलूँगी कभी  ।

वर्षों पहले
उकेरे थे तुमने
अंकित हैं वे
प्रेम -निशाँ मन में
साँसों मे जीवन में ।

12 टिप्‍पणियां:

  1. कमला जी बहुत खूबसूरत चोका लिखे एक बार नहीं कई बार पढ़ने को मन हुआ...बहुत बधाई।
    कृष्णा वर्मा

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  2. दोनों रचनाएँ बहुत सुंदर ....

    वर्षों पहले
    उकेरे थे तुमने
    अंकित हैं वे
    प्रेम -निशाँ मन में.
    साँसों मे जीवन में । बहुत सुंदर पंक्तियाँ

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  3. ज्योत्स्ना शर्मा10 अप्रैल 2012 को 5:03 pm बजे

    बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचनायें....बार बार पढ़ने को मन चाहे........बधाई आपको...!

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  4. बहुत सुंदर तांका हैं कमला जी... प्रकृति के माध्यम से जीवन सत्य बयान करते सभी तांका अत्यनत प्रभावशाली हैं ..

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  5. अति सुंदर...सार्थक और सारगर्भित तांका के लिए कमला जी को बधाई|

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  6. जब भावों की लहर मन का कोना भिगो जाती है तो नेह की सियाही में डूबी कलम कागज़ पे तिरने लगती है ...कहीं कोई तांका, कहीं चोका, कहीं कोई अनगढ़ सा नन्हा हाइकु अठखेलियाँ करने लगता है |

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  7. जब भावों की लहर मन का कोना भिगो जाती है तो नेह की सियाही में डूबी कलम कागज़ पे तिरने लगती है ...कहीं कोई तांका, कहीं चोका, कहीं कोई अनगढ़ सा नन्हा हाइकु अठखेलियाँ करने लगता है |

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  8. दोनों चोका बहुत सुन्दर और भावपूर्ण. दोनों ही चोका में मन के गहरे भाव जो शब्दों द्वारा विस्तार पा रहे...

    मैं तो पाषाण
    जमीं युगों -युगों से
    न बदली थी,
    न बदलूँगी कभी ।

    आभार कमला जी.

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  9. ओ मेरे मीत !
    मिलना तेरा -मेरा
    मिले हैं जैसे
    नदिया का किनारा .
    मन क्यों घबराया ?
    प्रेम में घबराहट क्या बारीक़ सोच है ऐसा ही होता है .आपके भावों में बह गए हम तो
    बधाई
    रचना

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