गुरुवार, 19 अप्रैल 2012

तुम न सुन पाए


1-डॉ अमिता कौंडल
1
बिखरा मन
अंधकार है छाया
तुम जो रूठे
आस भी टूटी अब
गम भी गहराया ।
2
जो थाम लेते
तो न ये बिखरते,
प्यार के मोती
खुशियाँ भी बसतीं
आँगन भी खिलता ।
3
कब समझे
तुम प्यार की भाषा ?
बस मैं बोली,
तुम न सुन पाए
फिर जी भर रोई ।
-0-


12 टिप्‍पणियां:

  1. बिखरते मन को कैसे खुशियाँ मिल जातीं ...इन भावों को बहुत खूबसूरती से उकेरा है ... सुंदर प्रस्तुति

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  2. जो थाम लेते
    तो न ये बिखरते,
    प्यार के मोती
    खुशियाँ भी बसतीं
    आँगन भी खिलता ।
    बहुत सुन्दर भाव।
    कृष्णा वर्मा
    3

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  3. कभी कभी बिखरी ज़िन्दगी को समेटना मुश्किल हो जाता है .यदि कोई अपना हाथ बढ़ा दे तो इन बिखरे मोतियों की माला बन सकती है ....................
    सुंदर प्रस्तुति अमिता जी
    रचना

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  4. प्यारे साथ की सुंदर अभिव्यक्ति
    बधाई
    रचना

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  5. सुंदर भावाभिव्यक्‍ति ! बधाई डॉ अमिता कौंडल जी। यह तांका विशेष रूप से पसंद आया -

    जो थाम लेते
    तो न ये बिखरते,
    प्यार के मोती
    खुशियाँ भी बसतीं
    आँगन भी खिलता ।

    जवाब देंहटाएं
  6. आप सभी को मेरी रचना पसनद आयी इसके लिए सभी का हार्दिक धन्यवाद. आशा है आप सभी का स्नेह यूँही मिलता रहेगा.

    सादर,

    अमिता कौंडल

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