रविवार, 22 अप्रैल 2012

कुछ मोती झरते


1- मुमताज टीएच खान
 1
मन को फाँ
तड़पाया जीवन
तीखी यादों ने
छटपटाए ऐसे
जल बिन मीन जैसे ।
2
मझधार में
फँसे जब भी नाव
न पतवार
न हो खेवनहार
प्रभु लगाए पार ।
-0-

2-संगीता स्वरूप 
1
घना सन्नाटा 
मौन की चादर  में 
दोनों लिपटे 
न तुम कुछ  बोले 
न मैं ही कुछ  बोली 
2
लब खुलते 
गिरह ढीली होती 
मन मिलते 
कुछ मोती झरते 
कुछ दंश हरते ।
3
गहन घन 
छँट जाते पल में ,
उजली रेखा 
भर देती  मन में 
अनुपम उल्लास ।
-0-

11 टिप्‍पणियां:

  1. मझधार में
    फँसे जब भी नाव
    न पतवार
    न हो खेवनहार
    प्रभु लगाए पार ।
    बहुत सुंदर भाव हैं मुमताज़ जी हार्दिक बधाई.....


    घना सन्नाटा
    मौन की चादर में
    दोनों लिपटे
    न तुम कुछ बोले
    न मैं ही कुछ बोली ।

    संगीत जी क्या खूब लिखा है........सच में मौन सन्नाटा बहुत भयंकर होता है. सुंदर भाव,
    सादर,
    अमिता कौंडल

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  2. वाह वाह लाजबाब ..सभी
    संगीता जी गज़ब के भाव हैं.

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  3. waaaaaaaaaaaaah kya baat hai.
    maja aa gaya padh kar.prem-jiwan ka ganit samjha diya.bahut sunder

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  4. बहुत सुन्दर भावपूर्ण ताँका मुमताज जी संगीता जी बहुत बधाई।

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  5. ज्योत्स्ना शर्मा27 अप्रैल 2012 को 11:31 am बजे

    मझधार में
    फँसे जब भी नाव
    न पतवार
    न हो खेवनहार
    प्रभु लगाए पार ।......बहुत सुन्दर भाव ..!..और ...मौन से मुखर होती उल्लास की किरन तक सभी तांका बहुत सुन्दर हैं ...बधाई...!

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  6. गहन घन
    छँट जाते पल में ,
    उजली रेखा
    भर देती मन में
    अनुपम उल्लास ।... आपकी कलम की जय

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  7. बहुत सुन्दर ताँका रचे हैं आप दोनों ने ! मुमताज़ जी के शब्दों में जादू है तो आपके मोती से शब्दों में सम्मोहन ! इन अद्भुत रचनाओं के लिये आप दोनों को बहुत-बहुत बधाई !

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  8. क्या खूब ताँका रचे हैं ………भावों का सुन्दर संगम हुआ है। अद्भुत संयोजन्।

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  9. "लब खुलते
    गिरह ढीली होती
    मन मिलते
    कुछ मोती झरते
    कुछ दंश हरते ।"
    वाह ! अनुपम संगीता जी !

    "मझधार में
    फँसे जब भी नाव
    न पतवार
    न हो खेवनहार
    प्रभु लगाए पार ।"
    सुंदर भावाभिव्यक्‍ति मुमताज़ जी ! बधाई !

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  10. सभी तांका बहुत सुन्दर हैं ...आप दोनों को बहुत बधाई..|

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  11. बहुत सुन्दर ताँका . संगीता जी और खान साहब को बधाई.

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