रविवार, 29 अप्रैल 2012

ओ मेरे कान्हा !

ज्योत्स्ना शर्मा
ओ मेरे कान्हा !
मुझको याद आया-
पीडा़ थी मेरी
तुमको क्यों रुलाया
चाहो तो तुम
यूँ मुझको सता लो
जैसे भी भाये
मुझे वैसे जला लो
इतना सुनो-
तुम हो प्राण मेरे
मुझमें बसे
'खुद ' को तो हटा लो
मुझसे कहो-
दर्द मेरे लिए थे
भला तुम क्यों सहो ...?
-0-
(चित्र: साभार गूगल)

10 टिप्‍पणियां:

  1. इतना सुनो-
    तुम हो प्राण मेरे
    मुझमें बसे
    'खुद ' को तो हटा लो
    मुझसे कहो-
    दर्द मेरे लिए थे
    भला तुम क्यों सहो ...?
    बहुत सुन्दर
    कृष्णा वर्मा

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  2. मुझमें बसे
    'खुद ' को तो हटा लो
    मुझसे कहो-
    दर्द मेरे लिए थे
    भला तुम क्यों सहो ...?


    बहुत सुंदर कविता! हार्दिक बधाई और धन्यवाद!
    सादर/सप्रेम
    सारिका मुकेश

    जवाब देंहटाएं
  3. मुझमें बसे
    'खुद ' को तो हटा लो
    मुझसे कहो-
    दर्द मेरे लिए थे
    भला तुम क्यों सहो ...?



    बहुत सुंदर कविता! हार्दिक बधाई और धन्यवाद!
    सादर/सप्रेम
    सारिका मुकेश

    जवाब देंहटाएं
  4. सार्थक रचना ..बधाई ...
    डा. रमा द्विवेदी

    जवाब देंहटाएं
  5. मुझसे कहो-
    दर्द मेरे लिए थे
    भला तुम क्यों सहो ...?

    बहुत सुन्दर...बधाई...।

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  6. बहुत ही भावपूर्ण और सुंदर "चोका" छंद रचने के लिए बधाई स्वीकार करें ज्योत्स्ना शर्मा जी।

    जवाब देंहटाएं
  7. ज्योत्स्ना शर्मा11 जुलाई 2012 को 10:30 pm बजे

    बहुत आभार ...आपके शब्द मेरी प्रेरणा हैं...सादर ज्योत्स्ना

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  8. वाह ............. कृष्ण जी के प्रेम का अमृत बरस रहा है इस कृति में !

    जय श्री कृष्ण

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    उत्तर
    1. जय श्री कृष्ण ....एवं ह्रदय से आभार इस सहृदय अभिव्यक्ति के लिए !

      सादर
      ज्योत्स्ना शर्मा

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