शुक्रवार, 13 जुलाई 2012

बनके प्रेम-घटा


8-डॉ जेन्नी शबनम
1
मन की पीड़ा 
बूँद -बूँद बरसी
बदरी से जा मिली  
तुम न आए 
साथ मेरे रो पड़ीं 
काली घनी घटाएँ !
2
तुम भी मानो 
मानती है दुनिया- 
ज़िंदगी है नसीब
ठोकरें मिलीं 
गिर -गिर सँभली
जिन्दगी है अजीब !  
3
एक पहेली 
उलझनों से भरी 
किससे पूछें हल ?
ज़िन्दगी है क्या 
पूछकरके हारे 
ज़िन्दगी है मुश्किल ! 
4
ओ प्रियतम !
बनके प्रेम-घटा 
जीवन पे छा जाओ 
प्रेम की वर्षा 
निरंतर बरसे
जीवन में आ जाओ !
-0-

7 टिप्‍पणियां:

  1. मन की पीड़ा
    बूँद -बूँद बरसी
    बदरी से जा मिली
    तुम न आए
    साथ मेरे रो पड़ीं
    काली घनी घटाएँ !

    Bahut khub! bahut2 badhai...

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  2. मन की पीड़ा

    बूँद -बूँद बरसी
    बदरी से जा मिली
    तुम न आए
    साथ मेरे रो पड़ीं
    काली घनी घटाएँ !

    बहुत खूबसूरत।
    कृष्णा वर्मा

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  3. अति सुन्दर,अद्भुत भाव लिए हुए सेदोके

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  4. ज्योत्स्ना शर्मा14 जुलाई 2012 को 2:46 pm बजे

    सभी सेदोका बहुत सुंदर ...
    मन की पीड़ा
    बूँद -बूँद बरसी
    बदरी से जा मिली
    तुम न आए
    साथ मेरे रो पड़ीं
    काली घनी घटाएँ !...विशेष ..बहुत बधाई

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  5. मेरी रचना को पसंद करने के लिए आप सभी का शुक्रिया. आदरणीय काम्बोज भाई का ह्रदय से आभार. सेदोका शब्द पहली बार आप से ही सुना और मैंने इस नई विधा को लिखना सीखा. आपसे यूँ ही स्नेह और आशीष की अपेक्षा रहेगी. धन्यवाद.

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  6. क्या खूब...बहुत बधाई जेन्नी जी...। आपकी बात से पूर्णतया सहमत हूँ...। हरदीप जी और आदरणीय काम्बोज जी के मार्गदर्शन और उत्साहवर्धन से हम सब एक नई विधा से जुड़ते जा रहे हैं...।

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