शनिवार, 13 अक्टूबर 2012

अधरों पे ताले


 शशि पाधा
     1
तरुवर की छाया है
मौसम बदलेगा
कुछ दिन की माया है  
     2
अपनों से डरते हो
अखियाँ बंद  करूँ  
सपनो में सजते हो  
3
कितनी हरियाली थी
युवती -सी शोभित
तरु  की हर डाली थी  
4
क्यों गुमसुम रहते हो
अधरों पे ताले
मन की ना कहते हो  
       5
दुख बाँटा करते हैं
पीर घनेरी है
लो साँझा करते हैं  
     6
क्या प्रीत निभाते हो
मन की धड़कन को
दिन रात छिपाते हो
      7
आओ चाँद बुला लाएँ
मन के द्वारे पर
कुछ दीप जला आएँ
      8
सन्ध्या सिन्दूरी है
इक परदेसी से
मीलों की दूरी है  
       9
तरुओं पर कलरव है
छेड़ो तान कोई
वीणा क्यों नीरव है  
      10
प्रीति  सदा प्राण हु
तेरे नयनों में
सुख की पहचान हुई  
-0-



4 टिप्‍पणियां:

  1. ज्योत्स्ना शर्मा14 अक्टूबर 2012 को 2:56 am बजे

    बहुत सुन्दर भावों से भरे माहिया हैं ...
    दुख बाँटा करते हैं
    पीर घनेरी है
    लो साँझा करते हैं ।...तथा ..

    आओ चाँद बुला लाएँ
    मन के द्वारे पर
    कुछ दीप जला आएँ ।......बहुत बहुत सुन्दर लगे ..बधाई !!

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  2. सारपूर्ण सुन्दर माहिया।

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  3. आओ चाँद बुला लाएँ
    मन के द्वारे पर
    कुछ दीप जला आएँ ।

    Bahut bhavpurn...bahut2 badhai...

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  4. आओ चाँद बुला लाएँ
    मन के द्वारे पर
    कुछ दीप जला आएँ ।
    क्या बात है ! बहुत बढ़िया लगा...बधाई...।

    प्रियंका

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