शनिवार, 13 अक्टूबर 2012

वो आँसू खारे थे


डॉ• ज्योत्स्ना शर्मा
1
सागर क्यूँ खारा है ?
मीठी सी नदिया
तन - मन सब वारा है ।
2
कब पास हमारे थे ?
जो दिन रैन बहे
वो आँसू खारे थे ।
3
काँटों से ये कलियाँ
कहतीं-झूमेंगे
हम मस्ती की गलियाँ ।
4
तुम जान न पाओगी
छलिया है मौसम
देखो ,मुरझाओगी ।
5
मन यूँ ना मुरझाना
बीत गईं  खुशियाँ
गम को भी टुर जाना ।

13 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  2. कब पास हमारे थे ?
    जो दिन रैन बहे
    वो आँसू खारे थे ....वो आंसू खारे ही थे..बहुत खारे..

    सुन्दर प्रस्तुति आभार.

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर रचना |

    इस समूहिक ब्लॉग में आए और हमसे जुड़ें :- काव्य का संसार

    यहाँ भी आयें:- ओ कलम !!

    जवाब देंहटाएं
  4. कब पास हमारे थे ?

    जो दिन रैन बहे

    वो आँसू खारे थे ।..... सुन्दर माहिया !
    डॉ सरस्वती माथुर

    जवाब देंहटाएं
  5. वाह! ज्योत्सना जी | गहरी अभिव्यक्ति |

    जवाब देंहटाएं
  6. सागर क्यूँ खारा है ?
    मीठी सी नदिया
    तन - मन सब वारा है ।

    Bahut gahan abhivyakti ki dhaara bah rahi hai ismen ...badhai...

    जवाब देंहटाएं
  7. ज्योत्स्ना शर्मा18 अक्टूबर 2012 को 1:16 am बजे

    आदरणीय डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)जी ,VermaKrishna जी ,Arvind Jangid जी ,काव्य संसार ,डॉ सरस्वती माथुर जी ,शशि पाधा जी ,Reena Maurya जी ,रश्मि जी ,
    Rajesh Kumari जी एवं Dr.Bhawna जी ....आपके उत्साह वर्धक बोल अनमोल निधि हैं मेरी ..ह्रदय से आभार आप सभी का !

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत प्यारे माहिया हैं...बधाई...।

    प्रियंका

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत बहुत धन्यवाद ...प्रियंका जी
    साभार ..ज्योत्स्ना शर्मा

    जवाब देंहटाएं
  10. सभी माहिया एक से बढ़कर एक किसी एक को चुनना बहुत ही मुश्किल ! ज्योत्सना जी बहुत ही सुंदर लिखती हैं विधा कोई भी हो !

    जवाब देंहटाएं