बुधवार, 17 जुलाई 2013

सब वही है

ताँका
सतीशराज पुष्करणा
1
सावन माह
आया समय पर
हुआ क्या लाभ ?
अगर झूमकर
पानी नहीं बरसा।
2
सागर क्या है
वो क्या जान पाएगा,
आज तक जो
बाहर नहीं आया 
आँगन के कुएँ से ।
3
उन्हें कोई भी
पकड़ लेगा कैसे
वो तो आज भी
काफ़ी लम्बे -चौड़े हैं
क़ानून  के हाथों  से ।
4
बादल आया
बूँदों को बरसाने
किसने फोड़ा
नाराज़ बादल को
बहा दिए शहर ।
5
बूढ़े चाँद की
नीयत ज़रा देखो-
देखा करता
उनके चेहरे को
बादलों की ओट से ।
6
सब वही है
पर क्या कहें हम
पापा के जाते
सूर्य -सी रौशन माँ
अब रात हो गई ।
-0-


9 टिप्‍पणियां:

  1. " सब वही है
    पर क्या कहें हम
    पापा के जाते
    सूर्य -सी रौशन माँ
    अब रात हो गई । "
    - अति सुन्दर !
    डॉ पुष्करणा जी के सभी तांका अति सुन्दर, अनुभवों से लबालब।
    मैं भी एक अनुभव बाँट रहा हूँ :
    " माँ क्या गई ?
    पापा तो बिखर गए
    आँखें निस्तेज
    खोये खोये से रहें
    कभी कुछ न कहें। "

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  2. बहुत सुंदर बिम्ब ...! भावपूर्ण, अर्थपूर्ण ताँका !

    ~सादर!!!

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  3. सभी रचनाएं ह्रदयस्पर्शी हैं पर ये तो नैन छलका गई -
    सब वही है
    पर क्या कहें हम
    पापा के जाते
    सूर्य -सी रौशन माँ
    अब रात हो गई ।

    बधाई |

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  4. सब वही है
    पर क्या कहें हम
    पापा के जाते
    सूर्य -सी रौशन माँ
    अब रात हो गई ।
    बेहतरीन ताँका....डा० सतीशराज पुष्करणा जी को हार्दिक बधाई!

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  5. सुन्दर, भावपूर्ण तांका के लिए बधाई...|
    प्रियंका

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  6. सब वही है
    पर क्या कहें हम
    पापा के जाते
    सूर्य -सी रौशन माँ
    अब रात हो गई ।
    bahut khoob bhav aur sach bhi
    aapka ek ek tanka bahut hi sunder hai
    bahut bahut badhai
    rachana

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  7. बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...

    सब वही है
    पर क्या कहें हम
    पापा के जाते
    सूर्य -सी रौशन माँ
    अब रात हो गई ।....मर्मस्पर्शी !!

    सादर
    ज्योत्स्ना शर्मा

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  8. ये बेहतरीन...

    सब वही है
    पर क्या कहें हम
    पापा के जाते
    सूर्य -सी रौशन माँ
    अब रात हो गई ।

    सभी ताँका बहुत भावपूर्ण, सतीशराज जी को हार्दिक बधाई.

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  9. बूढ़े चाँद की
    नीयत ज़रा देखो-
    देखा करता
    उनके चेहरे को
    बादलों की ओट से ।
    सभी ताँका बहुत भावपूर्ण, सतीशराज जी को हार्दिक बधाई.

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