ज्योत्स्ना प्रदीप
1
हे वंशीधर !
बाँसुरी के भीतर
कितने छिद्र!
एक में क्या असर?
उसी पर अधर!
2
ये महासुख
एक योगी -समान
दिये अभय-दान
भरे हैं पोर- पोर
मोक्षदायिनी-भोर !
3
शीत की धूप
ब्याह से पूर्व बेटी
मायके आई
नयन-जल लाई
हिम-निशा- सी लेटी।
4
हे मोर-पंख!
यूँ ही गर्व न करो,
माना हो तुम
कान्हा के सिरचढ़े,
प्राण वंशी में भरे ।
-0-
प्रवाहमय सभी सुंदर तांका .
जवाब देंहटाएंबधाई
बहुत सुन्दर ताँका.....बधाई!
जवाब देंहटाएं" हे वंशीधर/बाँसुरी के भीतर/कितने छिद्र/एक में क्या असर/उसी पर अधर!" ..सभी तांका सुंदर.....ज्योत्स्ना प्रदीप जी, बधाई!
जवाब देंहटाएंसभी तांका बहुत सुंदर!
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई ज्योत्स्ना जी !
~सादर!!!
भक्ति भाव से परिपूर्ण बहुत सुन्दर ताँका ...बहुत बधाई !!
जवाब देंहटाएंkrishna janamashtami ke shubh awsar par sundar tanka ke liye badhaai
जवाब देंहटाएंpushpa mehra
बहुत सुन्दर तांका हैं सभी...हार्दिक बधाई...|
जवाब देंहटाएंप्रियंका गुप्ता