शुक्रवार, 9 अगस्त 2013

मन का दर्द-रिश्ता

प्रियंका गुप्ता के दो चोका
1- मन का दर्द


जब भी कभी
दरकता है दिल
सुने न कोई
उसकी चटकन
किसी को कोई
फ़र्क नहीं पड़ता
अपना दुःख
सर्वोपरि होता है
हर रिश्ते में
तेरे मेरे फ़ासले
बँटे हुए से
दुखवा कासे कहूँ
सोचे है मन
तलाशता फिरे है
थोड़ी सी छाँव
ताकि कुछ पल को
राहत पा ले
कड़ी-तीखी धूप से
आँखों की नमी
भाप सी उड़ जाती
जग के आगे
सूखी आँखें लेकर
लब मुस्काते
कह कर क्या होगा
मन की व्यथा
छिपा अपने दर्द
हँसते रहो सदा
-0-
2-रिश्ता

कहा था तूने
चलूँगा साथ तेरे
इस छोर से
उस छोर तलक
हर रुत में
रुकूँगा न थकूँगा
संग रहूँगा
मौसम जो बदला
वादा है टूटा
कड़ी धूप में देखो
रिश्ता बदला
कल जो था अपना
आज पराया
छोड़ के गया जो तू
फिर न आया
नैना राह निहारे
भरमाए-से
सच को स्वीकारना
मन न माने
हर रिश्ते की यही
होती कहानी
दुःख मनाऊँ तो क्यों
यही तो ज़िन्दगानी ।

-0-

5 टिप्‍पणियां:

  1. यही ज़िंदगानी है शायद.... आँखें भीग गयीं...

    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति...प्रियंका जी!

    ~सादर!!!

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  2. "... कल जो था अपना/ आज पराया / छोड़ के गया जो तू / फिर न आया /
    नैना राह निहारे /.."!
    दोनों चोका बेहतरीन हैं और जीवन के कुछ नितांत व्यक्तिगत भावों को प्रश्रय देते हैं। प्रियंका जी, सुन्दर सृजन के लिए हार्दिक बधाई!

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  3. जीवन का कटु सत्य कहते ....मन को छू लेने वाले चोका हैं ...बधाई प्रियंका जी !

    ज्योत्स्ना शर्मा

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  4. रिश्ता....बहुत ही सुंदर अभिव्यक्‍ति । भाव और प्रवाह इस चोका छंद की खूवसूसती हैं । बधाई प्रियंका गुप्ता जी !

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  5. बहुत सुन्दर चोका.....बधाई!

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