मंगलवार, 24 सितंबर 2013

सुनो ज़िन्दगी!

डॉ ज्योत्स्ना शर्मा
1
उन्होनें कहा -
पंक भरा बाहर
पग रखना नहीं,
विश्वास मेरा-
खिलेंगे कमल भी
देखना कल यहीं ।
4
मैंने ये रिश्ते
फूल जैसे सहेजे
तितली की मानिंद
छुए प्यार से
महक बाकी रही
रंग भी खिल गए।
5
क्यूँ सोचते हो
जो तुम दर्द दोगे
तो बिखर जाऊँगी
ये जान लो
धुल के आँसुओं से
मैं निखर जाऊँगी ।
6
सुनो ज़िन्दगी!
तुम एक कविता
मैं बस गाती चली
रस -घट भी
प्रेम या पीडा़ -भरा
पाया , लुटाती चली ।
7
ओ रे सावन !
प्यारा मीत सबका
कली का ,चमन का
श्यामल मेघ
संग में लाया कर
यूँ ना भुलाया कर ।
-0-

8 टिप्‍पणियां:

  1. सुनो ज़िन्दगी!
    तुम एक कविता
    मैं बस गाती चली
    रस -घट भी
    प्रेम या पीडा़ -भरा
    पाया , लुटाती चली ।
    sahi kaha aapne bahut sunder
    rachana

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  2. ज्योत्स्ना जी ! सभी सेदोका मन को भाए - बहुत सुहाए ! आपको इस उत्तम सृजन के लिए बधाई !

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  3. सभी सेदोका भावपूर्ण ४, ५, ६ बहुत बढ़िया !
    ज्योत्स्ना जी बधाई!

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  4. अति सुन्दर भाव एवं शब्द चयन | पहला और छटा अनुपम |

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  5. इस स्नेहमयी उपस्थिति के लिए हृदय से आभार आप सभी का !

    सादर !
    ज्योत्स्ना शर्मा

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  6. खूबसूरत सेदोका के लिए हार्दिक बधाई...|

    प्रियंका

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