गुरुवार, 17 अक्टूबर 2013

पीर चुरा भागी

ऋता शेखर 'मधु'
1
कोयलिया जब बोली
हिय में हूक उठी
उर  ने परतें खोलीं।
2
उसकी शीतल बानी
पीर चुरा भागी
सूखा दृग से पानी।
3
पंछी गीत सुनाएँ
चार पहर दिन के
साज़ बजाते जाएँ ।
4
टिमटिम चमके तारे
रात सुहानी है
किलके बच्चे सारे ।
5
प्राची की अठखेली
नभ में रंग भरे
कूँची ये  अलबेली।
6
सूरज पाँव पसारे
जाग गई धरती
खग बोले भिनसारे।
7
जीवन सफ़र सुहाना
गम या खुशियाँ हों
गाता जाय तराना।
8
जागो  रे सब जागो
नव निर्माण करो

आलस को अब त्यागो।

9 टिप्‍पणियां:

  1. विविध रंग लिए सुन्दर माहिया ..

    उसकी शीतल बानी
    पीर चुरा भागी
    सूखा दृग से पानी।.....सचमुच बहुत सामर्थ्य है मधुर वाणी में ....बधाई आपको !!

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  2. प्राची की अठखेली
    नभ में रंग भरे
    कूँची ये अलबेली।

    बहुत सुंदर महिया ऋता जी .....बहुत भावपूर्ण ...!!

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    1. प्रोत्साहन के लिए बहुत आभार अनुपमा जी !!

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    2. मेरे माहिया को यहाँ पर स्थान देने के लिए बहुत आभार !!

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  3. सूरज पाँव पसारे
    जाग गई धरती
    खग बोले भिनसारे।
    bahut hi khoob likha hai badhai
    rachana

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  4. ऋता जी सभी माहिया बहुत सुन्दर......बधाई !

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  5. बहुत सुन्दर माहिया है...ये तो बहुत अच्छा लगा...|
    प्राची की अठखेली
    नभ में रंग भरे
    कूँची ये अलबेली।

    बधाई...|

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