शनिवार, 14 जून 2014

उर्दू की इबारत

गुलाबी बचपन........ बताशों जैसे दिन ........ खुद ही रूठकर खुद ही मान जाते ........ हर बात में'क्यों का होना लाज़मी ........ उन्हीं दिनों में पाकिस्तानी टी. वी. चैनल का क्विज़ 'नीलाम घर'बड़े ही चाव से देखते मगर जब कुछ उर्दू में लिखा होता तो हम से पढ़ा नहीं जाता था।  मेरे पापा हमें पढ़कर बताते। " मुझे उर्दू क्यों नहीं आ्ती - आपको क्यों आती है ?" मेरी हर  क्यों का जवाब पापा हँसकर टाल जाते। शायद वो भाषायी तथा मज़हबी बँटवारे का बोझ हमारे बाल मनों पर नहीं डालना चाहते होंगे। "हमारे स्कूल में तो हमें कोई उर्दू नहीं पढ़ाता," एक दिन मैंने निराश होकर बोला। " उर्दू तो हमें भी किसी ने स्कूल में नहीं पढ़ाई ," पापा ने झट से उत्तर दिया। "........ तो फिर आपको  उर्दू पढ़ना कैसे आ गयामेरी जिज्ञासा ये सब जानने के लिए सिर उठाने लेने लगी थी। " उर्दू सीखने का मेरा तो एक बड़ा ही विचित्र संयोग बना ........ " किसी अनोखी ख़ुशी में झूलते पापा ने बताना शुरू किया ........ न जाने कौन से दिप-दिप  बलते दीप जल उठे थे उनके मन की दीवट पर।
            "........ साठ -इकासठ  (1960 -61) की बात है ........ तब अपना ये पंजाबी प्रांत भी अभी बना नहीं था ........ मैं पी. ए यू.  -हिसार के वेटनरी कॉलेज में पढ़ता था।  हॉस्टल से हम चार -पाँच जने फिल्म देखने के लिए गए। सिनेमा में फिल्म का बोर्ड उर्दू में लिखा था और हम में से किसी से भी पढ़ा नहीं जा रहा था। दुविधा में फँसे हम एक दूसरे को कोहनियाँ मारकर पूछ रहे थे ........ यार कौन -सी फिल्म है ये फोटो में पृथ्वी राज कपूर दिलीप कुमार और मधुबाला तो नज़र आ रहे थे ........ मगर फिल्म का नाम किसी को भी पता नहीं चल रहा था। इतनी देर में किसी ने पीछे से आकर हमसे बोला ," मुन्ना ........ कपड़े तो बड़े अच्छे पहने हैं ........ सूटेड -बूटेड हो ........ सभी जँच रहे हो ........ अच्छे घरों के दिखते हो ........ मगर बोर्ड तुमसे पढ़ा नहीं जा रहा ........ मुन्ना कितना पढ़े हो ?" हमें तो जैसे साँप सूँघ गया था ........ कोई जवाब नहीं सूझ रहा था ........ क्या बोलते वह रब्ब का बंदा हमारे चेहरों पर चढ़ते -उतरते रंग देखता इतनी बात बोलकर पता नहीं कहाँ भीड़ में गुम हो गयामगर दिल को झकझोकोरते शब्दों की छाप हमारे दिल पर छोड़ गया।  फिर फिल्म हमें कहाँ देखनी थीवहीं से लौट आए। उर्दू वाला बोर्ड प्रश्न चिह्न बनकर मेरे मन की दहलीज़ पर आ खड़ा हुआ। मैं तो  सीधा बुक -स्टोर पर गया ........ उर्दू का कायदा खरीदा ........ दस -पंद्रह दिनों में उर्दू शब्द -जोड़ पढ़ना  सीखा।   पतझड़ के बाद बगावत करके आई बहार जैसे हम दोबारा फिल्म देखने गए तो मेरी ख़ुशी का कोई ठिकाना न रहा -जब मैंने सभी को फिल्म का बोर्ड पढ़कर सुनाया।  फिल्म थी ........ के. आसिफ़ की ........ मुग़ले आज़म مغلِ اعظم,........ तब का सीखा उर्दू मुझे आज तक नहीं भूला। " बात ख़त्म करते हुए पापा की आँखों में एक ख़ास चमक थी ........ ऐसा लग रहा था कि भोर की लालिमा- सा वो बोर्ड अब भी उनके सामने ही हो।
       पापा से उर्दू सीखना और न जाने कितने अरमान दिल में ही रह गए ........ अनहोनी उन्हें हमसे सदा -सदा के लिए छीनकर ले गई ........ और यादें ........ हमारे मन से सरकती ज़िंदगी के ख़ालीपन को भरने लगीं।
        
  टी. वी. में देखी
  उर्दू की इबारत   
  यादों में बापू।

डॉ हरदीप कौर सन्धु 

* मेरे पूजनीय पिता जी की स्मृति में विनम्र श्रद्धांजलि  के रूप में  ( 20  अप्रैल 1940 - 14 जून 1991 )
  

10 टिप्‍पणियां:

  1. इतनी एकाग्रता ,तन्मयता से आदरणीय पापा जी को याद करते हुए लिखा आप ने कि एक एक दृश्य साकार हो गया .....स्मृतियाँ अतीत में ले जाती तो हैं लेकिन समय को कभी वापस लौटा कर नहीं लाती ...काश !
    आपकी भावुक अभिव्यक्ति , सच्चे मन से स्मरण ही सच्ची श्रद्धांजलि है उन के लिए | मेरी ओर से भी सादर नमन ,श्रद्धा सुमन !
    ईश्वर से प्रार्थना करती हूँ कि आप और सभी परिवारी जन अपने सुन्दर कार्यों से सदा उन्नति के पथ पर अग्रसर हो ..नाम रौशन करें !!

    सादर
    ज्योत्स्ना शर्मा

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही भावपूर्ण हाइबन।
    आपके पिता की स्मृति को श्रद्धांजलि।

    जवाब देंहटाएं
  3. यकीनन यादें खालीपन को भरती है....

    जवाब देंहटाएं
  4. पिता नभ समान है। ऊँचाई, ज्योति, गहनता व छाँव...एक ही रूप में। हमारे बचपन को एक अनूठी दिशा देता है यह रूप। आप बहुत प्यारी बेटी है। जो आपको निर्मल मन मिला है, वह माता पिता की देन है। आपके भाव-पुष्‍प हमेशा ताजें रहे....खुशबू फेलाते रहे। नमन है आपके पिताजी को तथा आपकी अभिव्यक्ति को। प्रभु आपको सपरिवारसदा खुश रखे।

    जवाब देंहटाएं
  5. सर्वप्रथम मेरी उन्हें हार्दिक श्रद्धांजलि है . पिताजी की यादों को साहित्य के साथ
    खूबसूरती के साथ हाइबन में पिरोया है वाकई अपनेआप में मिसाल है . आज उनके आशीर्वाद से साहित्य के शिखर पर आप हैं .

    जवाब देंहटाएं
  6. pita ki smriti mein duba chitramay haiban mujhe mere pita ki yaad dila gaya. apke divangat pita ji ke charanon ki yadon ko mera sadar naman.
    pushpa mehra.

    जवाब देंहटाएं
  7. पिता की मधुर स्मृतियों से गुंथा आपका सुन्दर हाइबन ... उन्हें मेरी श्रद्धांजली !

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत ही सुन्‍दर दिल को छू लेने वाला हाइबन। उन्‍हें मेरी ओर से भी श्रद्धांजली।

    जवाब देंहटाएं
  9. हरदीप जी, आपकी कलम के जादू से मानो पूरा संस्मरण हम लोगों की आँखों के सामने भी साकार हो गया...| बहुत भावपूर्ण और मर्मस्पर्शी...| आपके पिताजी की यादों को सादर नमन...|

    जवाब देंहटाएं
  10. मन को भावाकुल करता हाइबन मैंने आज पढ़ा ।बहुत ही मनोंरंजक और मार्मिक है पापा को जैसे सामने खड़ा कर गया और वे खुद ही हमें जीवन का यह संस्मरण सुना रहें हों ।पिता की यादें यहाँ आँखे नम करती हैं वहाँ उन पलों को सामने ला कर आनंद से भी भर देती है । पापा की स्मृतियाँ पूरे परिवार को हौंसलें से भरती रहें । दिल से तो अपने प्यारे दूर जा ही नहीं सकते ।

    जवाब देंहटाएं