रविवार, 15 जून 2014

पिता ही काबा,काशी



ज्योत्स्ना प्रदीप

1-सेदोका

1

नव ऊषा हो

या दिवसावसान,

वो तेरे मंत्र गान ,

उगलते थे,

समृद्धि सुख- राशि

पिता ही काबा,काशी |
-0-

2-ताँका

1

निकला नहीं

माँ का सीमंत -सूर्य

जिस पल से

एक रात गहरी,

उसमे आ ठहरी |

2

पाला था जिन्हे

वो ही बने पालकी

उठाते देह ,

मन व्यथित ,क्लान्त

पिता पड़े थे शान्त |

-0-

4 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन सेदोका और ताँका ज्योत्स्ना प्रदीप जी.....बहुत-२ बधाई !

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  2. बहुत गहरे ..भाव पूर्ण सेदोका और ताँका ...ज्योत्स्ना जी ..हार्दिक बधाई !!
    नमन आपकी लेखनी को ..आपको !!
    सादर
    ज्योत्स्ना शर्मा

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  3. apake tankka aur sedoka bahut hi bhavpurn hain. jyotsna ji apko badhai.
    pushpa mehra.

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