सोमवार, 8 सितंबर 2014

शुभ -सौन्दर्य

1-चोका
 ज्योत्स्ना प्रदीप

        ध्वनि शंख-सी
        आँखें मोर -पंख -सी
        एक छवि की !
        कल्पना हो कवि की,
        शुभ -सौन्दर्य
        मूक चित्रकार का ।
        आकार लिये,
        उस निराकार का ।
        सुशोभित हो
        पीत -परिधान में
        मुस्कान मानो
        मोती भरा-कटोरा
        फैला ब्राह्माण्ड
        हुँ ओर उजले
        गीता का ज्ञान
        तेरी- बाँसुरी स्वर !
        या शंख- नाद
        है समीर समेटे
        आज भी कही
        एक गोपी ढूँती
        वह विटप
        जिसके तले कान्हा
        गैया के पास
        आज भी अधलेटे
        सुने जो सुर
        अनादि -वंशी -तान
        असीम -भाग्यवान
      -0-
2- माहिया
डॉ सरस्वती माथुर
1
 तुमको जब से खोया
 मनवा जाने क्यों   
 बादल बनकर रोया l
2
मन की जब नाव चली
पुरवा -सी  यादें 
साजन  के गाँव चली l
3
चुपके-चुपके आया
चंदा बन मन में
मेरा साजन छाया l
4
नैना तोसे   लागे
साजन की खातिर
हम रातों  को  जागे l
-0-



9 टिप्‍पणियां:

  1. ज्योत्स्ना प्रदीप जी... बहुत सुन्दर कल्पना ! मनमोहक छवि ! :-)

    सरस्वती जी... सुन्दर माहिया

    मन की जब नाव चली
    पुरवा -सी यादें
    साजन के गाँव चली l- सबसे अच्छा लगा !


    ~सादर
    अनिता ललित

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  2. सभी रचनाएं बहुत सुन्दर एवं मन भावन हैं। ज्योत्स्ना प्रदीप जी और डॉ सरस्वती माथुर जी, आप दोनों को हार्दिक बधाई !

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  3. ज्योत्स्ना जी के चोका में अद्भुत सौन्दर्य निहित है, बधाई.

    सभी माहिया बहुत सुन्दर, सरस्वती जी को बधाई.

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  4. चोका और माहिया का कथ्य - तथ्य की उत्कृष्ट प्रस्तुति
    आप दोनों को बधाई

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  5. bjyotsna ji apka choka aur saraswati ji apka mahiya b ahut achha likha hai . ap dono ko badhai.
    pushpa mehra.

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  6. सुन्दर शब्दों में बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है ज्योत्स्ना जी ..अनुपम रचना के लिए बधाई !

    सुन्दर ,मोहक माहिया सरस्वती जी ..बहुत बधाई

    सादर
    ज्योत्स्ना शर्मा

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  7. प्यारे से चोका और मनभावन माहिया के लिए आप दोनों को ही हार्दिक बधाई...|

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