बुधवार, 23 नवंबर 2016

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भावना सक्सैना
 बिछड़े कुछ
दोराहे की मानिंद
मिले न कभी,
दोराहे मिल जाते
उल्टा चलके
लौटे नहीं ज़िंदगी।
सिखाते थे जो
गिरना  सँभलना
रूठे वो सभी,
हाथ पकड़कर
चलती रही
फिर भी ये ज़िंदगी।
फैला दरिया,
तैरने की चाह में
तिरते रहे
डूबते -उतराते
खारे पानी में
अनजान डगर
कँटीला पथ
कदम बिन रुके
चलते रहे।
सफर में चलते
काँटों से भरे
ये हुआ ऐतबार
कितनी बार
गुरु सबसे बड़ी 
ज़िंदगी हर कहीं।
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14 टिप्‍पणियां:

  1. बेहद खूबसूरत है यह! बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीया भावना जी।

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  2. बहुत बढ़िया चोका... भावना जी बहुत-बहुत बधाई।

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  3. भावना जी बहुत खूबसूरत चौका है - बिछुड़े कुछ दोराहे की मानिंद ... ।फिर भी जिन्दगी चलती रहती है ।

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  4. ये हुआ ऐतबार
    कितनी बार
    गुरु सबसे बड़ी
    ज़िंदगी हर कहीं। बहुत गहरी बात कही आपने भावना जी | सुन्दर चोक, बधाई |

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  5. नेरे चोका को त्रिवेणी में स्थान देने के लिए संपादक द्वय का हार्दिक आभार।

    कांता रॉय जी,कृष्णा जी, कमला घटाऔरा जी शशि पाधा जी, पुष्पा मेहरा जी, उत्साहवर्धन के लिए आप सभी का हृदय से आभार।
    सादर
    भावना

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  6. भावना जी बहुत सुंदर सृजन के लिए बहुत बहुत बधाई

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  7. दिल को छूने वाला चोका। बहुत बधाई भावना सक्सैना जी । डॉ सतीशराज पुष्करणा

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  8. जीवन के यथार्थ को दर्शाता भावपूर्ण चोका। बधाई भावनाजी।

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  9. सत्य कहा भावना जी! ज़िन्दगी सबसे बड़ी गुरु होती है !!!
    हार्दिक बधाई आपको!!!

    ~सादर
    अनिता ललित

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  10. गुरु सबसे बड़ी
    ज़िंदगी हर कहीं।
    बहुत सच्ची बात...| इस खूबसूरत चोका के लिए बहुत बधाई...|

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  11. गुरु सबसे बड़ी
    ज़िंदगी हर कहीं।....बहुत बढ़िया भावना जी !

    सच है ..ज़िंदगी तो सिखाती रहती है ..आख़िरी साँस तक !!
    बहुत बधाई आपको !!

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  12. ज़िन्दगी सबसे बड़ी गुरु होती है.....
    सच है !!!
    दिल को छूने वाला चोका बहुत बधाई भावना सक्सैना जी ।

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