मंगलवार, 14 नवंबर 2017

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भोर की बेला
सुदर्शन रत्नाकर

भोर की बेला
धूसर आसमान
सोए हैं पक्षी
थका -थका सा चाँद
मंद पवन
तारों का रंग फीका
दुल्हन रात
कैसे रंग निराले
लुटा शृंगार
आँसुओं का सैलाब
भीगी धरती
गुपचुप कलियाँ
सूनी डगर
सन्नाटा है पसरा
ओर न छोर।
प्रकृति नहीं हारी
करवट ली
बदल गया सब
उगा सूरज
नभ नील झील में
बिखरे रंग
जाग उठा जीवन
जग- ऑगन
कलरव करते
उड़े विहग
खिल गईं कलियाँ
शीतल हवा
छू रही तन -मन
आलस्य छोड़
उठ गया इन्सान
नव  स्फूर्ति आह्वान।

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17 टिप्‍पणियां:

  1. वाह, सुंदर भाव, प्रवाह पूर्ण भाषा। अति सुंदर !

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  2. नवस्फूर्ति उत्पन्न करता सुंदर चोका। बधाई सुदर्शन दी।

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  3. नवस्फूर्ति उत्पन्न करता सुंदर चोका। बधाई सुदर्शन दी।

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  4. बहुत बहुत सुंदर । बहुत बेहतरीन
    हार्दिक बधाई

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  5. बहुत बहुत सुंदर । बहुत बेहतरीन
    हार्दिक बधाई

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  6. अनिता,भावना, सत्याजी चोका पसंद करने के लिए आप सब का हार्दिक आभार

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  7. आदरणीया सुदर्शन दीदी बहुत सुंदर चोका हार्दिक बधाई।

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  8. खूबसूरत चोका , प्रकृति का अनोखा चित्रण । बधाई सुदर्शन जी ।

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  9. प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार विभाजी।

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  10. प्रातकालीन प्रकृति का सुंदर ह्रदयगम्य चित्रात्मक दृश्य प्रस्तुत करता(मोहक सुप्त,अर्धसुप्त वा जागृत चर-अचर की रील सी खोलता)चोका बहुत ही सुंदर व कोमल लगा सुदर्शन जी बधाई|

    पुष्पा मेहरा

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  11. बहुत सुन्दर ,सरस चोका ,हार्दिक बधाई दीदी |

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  12. प्रकृति का सुन्दर वर्णन करता मन को छु जाने वाला चोका है |सुदर्शन जी को हार्दिक बधाई |

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  13. बहुत सुंदर, मनमोहक चोका सुदर्शन जी...बहुत-बहुत बधाई।

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  14. अति सुन्दर चौके बधाई रत्नाकर जी

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  15. प्रकृति-प्रेमिका आदरणीय सुदर्शन दीदी को बहुत बहुत बधाई
    हार्दिक शुभकामनाएं

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  16. बहुत मनभावन चोका है | मेरी बधाई स्वीकारें...|

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