शुक्रवार, 4 मई 2018

806-प्रेमग्रन्थ के पन्ने


डॉ.कविता भट्ट 

माना हो गए
अंतर्देशीय गुम
लिफ़ाफ़े-चिठ्ठी,
उन्हीं के साथ
दफ़न हो गई हैं
या भस्मीभूत
गुलाबी पंखुड़ियाँ,
महकी हुई
लिफ़ाफ़े के भीतर,
बार-बार थी
प्रियतमा पढ़ती
मुस्काते शब्द
अंत मे लिखा हुआ
सिर्फ तुम्हारा!
फैल जाया करती
उसकी आँखें
अनुभव करती
अद्भुत प्रेम
वह अनुभूति भी
हुई दफ़न
या कहूँ भस्मीभूत,
नहीं रुकेंगीं
प्रिय की आँखें कभी
लिखेंगी सदा
मुस्काती मौन रह
प्रेम की भाषा,
न ही होगी दफ़न,
न भस्मीभूत;
क्योंकि बदलती है
अभिव्यक्ति ही
अपरिवर्तित है-
पवित्र प्रेम,
इसका धर्म नहीं,
सार्वभौम है,
केवल सत्यता है
इसका धर्म
विज्ञान जहाँ खत्म,
वहाँ से शुरू!
प्रेम होता शाश्वत
परास्त हुई
तकनीक इससे,
इसीलिए तो
झँपती नहीं कभी
मुस्काती आँखें
और कनखियों से
देखती हुई
प्यारी तरल आँखें
 बिना लिफाफे
बिना अंतर्देशीय,
मोबाइल के;
पंखुरियाँ न सही
आँखें भेजतीं
पीड़ामिश्रित-आशा
मन के उद्वेग
बन्द होते झरोखे
कभी खुलते
झाँकती रश्मियों के
हाथ रचते
खुशबू से महके

 प्रेमग्रंथ के पन्ने...।
-०-
* सभी चित्र गूगल से *

12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर , सरल, तरल चोका !
    हार्दिक बधाई कविता जी !!

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  2. हार्दिक आभार आदरणीया, डॉ ज्योत्स्ना जी

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  3. सच्चा और पवित्र प्रेम किसी भी साधन से व्यक्त हो, उतना ही निर्मल रहता है...। बहुत खूबसूरत रचना, बहुत बधाई

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  4. प्रेम व्यक्त होने की जगह ढूँढ़ ही लेता है। सुन्दर चोका।
    हार्दिक बधाई कविता जी!!!

    ~सादर
    अनिता ललित

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  5. वाह,
    प्रेम की भाषा,
    न ही होगी दफ़न,
    न भस्मीभूत;
    क्योंकि बदलती है
    अभिव्यक्ति ही
    अपरिवर्तित है-
    पवित्र प्रेम,
    इसका धर्म नहीं,
    सार्वभौम है,
    केवल सत्यता है
    इसका धर्म।
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।बधाई डॉ. कविता भट्ट जी

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  6. बहुत बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
    हार्दिक बधाई कविता जी

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  7. कविता जी , पूरा चोका गहन प्रेम की अछूती सरस अभिव्यक्ति है . सहृदय रचनाकार किसी काव्य शैली का अनुगामी नहीं होता . जिसके पास भाव -संपदा है , वह किसी भी शैली को अपनाए , उसमें प्राण -संचार कर देगा . आपने पत्र के साथ आँखों के एक -एक दृष्टि चाप को जीवन्त कर दिया. हार्दिक स्नेहिल बधाई

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  8. प्रेम की बहुत ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति... हार्दिक बधाई कविता जी।

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  9. शास्वत प्रेम की अनूठी अभिव्यक्ति कविता जी ।
    बधाई ।

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  10. प्रेम की सहज सुंदर अभिव्यक्ति।बधाई कविता जी

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  11. बहुत सुन्दर चोका, बधाई कविता जी.
    ख़त की रूमानियत कहीं खो गई है आज. बहुत मनमोहक भाव...

    माना हो गए
    अंतर्देशीय गुम
    लिफ़ाफ़े-चिठ्ठी,
    उन्हीं के साथ
    दफ़न हो गई हैं
    या भस्मीभूत
    गुलाबी पंखुड़ियाँ,
    महकी हुई
    लिफ़ाफ़े के भीतर,
    बार-बार थी
    प्रियतमा पढ़ती
    मुस्काते शब्द
    अंत मे लिखा हुआ
    ‘सिर्फ तुम्हारा!’

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